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कपोल-क े-पत चमत्कारों की बढ़ा-चढ़ाकर चर्चा करना भगवान का बहुमान नहीं, भक्ति नहीं, स्तुति नहीं, वरन् उनमें विद्यमान वीतरागता, सर्वज्ञता, अनन्तसुख, अनन्तवीर्य आदि गुणों का चिन्तवन, महिमा, बहुमान ही वास्तविक भक्ति है।
सत्य की खोज, पृ. २९
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सत्साहित्य का निर्माण परमसत्य के उद्घाटन के लिए किया जानेवाला महान कार्य है, अतः इसका पठन-पाठन भी परमसत्य की उपलब्धि के लिए गम्भीरता से किया जाना चाहिए।
आप कुछ भी कहो, पृ. २
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