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निज आत्मा निश्चय-शरण व्यवहार से परमातमा। जो खोजता पर की शरण वह आतमा बहिरातमा॥ ध्रुवधाम से जो विमुख वह पर्याय ही संसार है। ध्रुवधाम की आराधना आराधना का सार है॥
संयोग हैं अशरण सभी निज आतमा ध्रुवधाम है। पर्याय व्ययधर्मा परन्तु द्रव्य शाश्वत धाम है। इस सत्य को पहिचानना ही भावना का सार है। ध्रुवधाम की आराधना आराधना का सार है।
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