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१८. श्री अरनाथ वन्दना
हे चक्रधर जग जीतकर षट्खण्ड को निज वश किया । पर आतमा निज नित्य एक अखण्ड तुम अपना लिया || हे ज्ञानधन अरनाथ जिन धन-धान्य को ठुकरा दिया। विज्ञानघन आनन्दघन निज आतमा को पा लिया ॥
१९. श्री मल्लिनाथ वन्दना
हे दुपद - त्यागी मल्लि जिन मन-मल्ल का मर्दन किया। एकान्त पीड़ित जगत को अनेकान्त का दर्शन दिया ।। तुमने बताया जगत को क्रमबद्ध है सब परिणमन । हे सर्वदर्शी सर्वज्ञानी नमन हो शत-शत नमन ॥
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