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________________ जिनधर्म-विवेचन ४. जब जीव, निज शुद्धात्मा को ध्यान का ध्येय बनाता है, तब धर्म उत्पन्न होता है; पंच परमेष्ठी के ध्यान से भी नहीं - इस यथार्थ बात का ज्ञान कराने तथा मोक्षमार्ग उत्पन्न कराने के लिए प्रमेयत्वगुण का ज्ञान विशेषरूप से उपयोगी है, जो सम्यग्दर्शन की प्राप्ति की प्रेरणा देनेवाला है। १५८ ५. अणुव्रत या महाव्रत स्वीकारने से ही आत्मानुभव होता है; इस मान्यता का भी स्वयमेव खण्डन हो जाता है। जैसे, राजा श्रेणिक आदि के उदाहरण शास्त्रों में मिलते हैं। नरकगति एवं देवगति में तो व्रतों का अभाव नियम से ही रहता है, फिर भी वहाँ असंख्यात जीव आत्मानुभवी सम्यग्दृष्टि पाये जाते हैं। १७७. प्रश्न प्रमेयत्वगुण किसे कहते हैं? उत्तर - जिस शक्ति के कारण द्रव्य, किसी न किसी ज्ञान का विषय हो अर्थात् ज्ञेय हो, उसे प्रमेयत्वगुण कहते हैं। १७८. प्रश्न – किसी न किसी ज्ञान का विषय / ज्ञेय हो तो क्या ज्ञान भी अनेक होते हैं? यदि ज्ञान अनेक होते हैं तो उन्हें नाम सहित बताइए । उत्तर - देखो, आत्मा में ज्ञानगुण तो एक ही है, परन्तु उसकी पर्यायें अनेक हैं, उन्हें पाँच प्रकार से बताया गया है- १. मतिज्ञान २. श्रुतज्ञान ३. अवधिज्ञान ४. मन:पर्ययज्ञान और ५. केवलज्ञान । १७९. प्रश्न ज्ञान किसे कहते हैं? - उत्तर- जिससे जीव, ज्ञेयभूत पदार्थों को जानता है, वह ज्ञान है। पर्यायों की अपेक्षा वही ज्ञान, उक्त पाँच प्रकार का कहा गया है। १८०. प्रश्न ज्ञेय किसे कहते हैं? उत्तर - ज्ञान जिसे जानता है, वह ज्ञेय है। जैसे ज्ञान, घट को जानता है तो घट, ज्ञान का ज्ञेय हुआ। ज्ञेय को ही प्रमेय भी कहते हैं। इस जगत् में जीवादि अनन्तानन्त द्रव्य हैं। जीवादि द्रव्यों में रहनेवाले अनन्तानन्त गुण हैं, उन गुणों की अनन्तान्त पर्यायें हैं । इसप्रकार सर्व द्रव्य, सर्व गुण और सर्व पर्यायें ज्ञान के ज्ञेय अर्थात् प्रमेय हैं। १८१. प्रश्न - ज्ञाता किसे कहते हैं? (80) प्रमेयत्वगुण - विवेचन १५९ उत्तर - जो जानता है, वही तो ज्ञाता है। विश्व में अनन्त जीवद्रव्य हैं, वे जानते हैं; अतः वे सभी ज्ञाता हैं । १८२. प्रश्न- 'प्रमेयत्व' शब्द का क्या अर्थ है ? उत्तर - प्र = विशेषरूप से, मेय= जानने में आने योग्य, त्व = भाव (योग्यता)। इसप्रकार प्रमेयत्व शब्द का अर्थ हुआ विशेषरूप से जानने में आने की योग्यता । १८३. प्रश्न - प्रमेयत्वगुण के कारण द्रव्य को क्या कहते हैं? उत्तर - प्रमेयत्वगुण के कारण द्रव्य को 'प्रमेय अथवा ज्ञेय' कहते हैं। १८४. प्रश्न - जीवादि छह द्रव्यों में ज्ञेयरूप द्रव्य कितने हैं एवं ज्ञातारूप द्रव्य कितने और कौन-कौन से हैं? उत्तर - जीवादि सभी छह द्रव्य 'ज्ञेय' हैं; क्योंकि सभी द्रव्यों में 'प्रमेयत्व' नाम का गुण हैं, जबकि मात्र एक जीवद्रव्य ही ज्ञातारूप द्रव्य भी है। १८५. प्रश्न ज्ञेय और ज्ञातारूप द्रव्य कौन है? उत्तर - केवल एक जीवद्रव्य ही ज्ञेयरूप भी हैं और ज्ञातारूप भी है। १८६. प्रश्न प्रमेयत्वगुण का कथन आगम में किन-किन ग्रन्थों में आता है? उत्तर - आचार्यों ने अनेक ग्रन्थों में प्रमेयत्वगुण का कथन किया है। हम यहाँ संक्षेप में उनका विवरण प्रस्तुत करते हैं - १. आचार्य कुन्दकुन्द ने ग्रन्थाधिराज समयसार की गाथा ३१९३२० में अत्यन्त स्पष्ट एवं सुलभ शब्दों में दृष्टान्त के साथ कहा है - "अनेक प्रकार के कर्मों को न तो ज्ञानी करता ही है और न भोगता ही है; किन्तु उन पुण्य-पाप रूप कर्मबन्ध को और कर्मफल को मात्र जानता ही है। " “जिसप्रकार दृष्टि (नेत्र), दृश्य पदार्थों को देखती ही है, उन्हें करती
SR No.009455
Book TitleJin Dharm Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain, Rakesh Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages105
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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