________________
जिनधर्म-विवेचन
गाथा २५ में किया है; टीकाकार मुनिराज पद्मप्रभमलधारिदेव ने भी थोड़ा विस्तार किया है - 'परमाणु दो प्रकार का होता है- १. कारणपरमाणु २. कार्यपरमाणु ।' जबकि इसकी टीका में और दो भेद किये गये हैं - ३. जघन्य परमाणु और ४. उत्कृष्ट परमाणु ।
७०. प्रश्न- परमाणु सम्बन्धी विशेष जानकारी के लिए आगम में समागत सन्दर्भ क्या-क्या हैं?
उत्तर - सर्वार्थसिद्धि में अध्याय ५ के सूत्र २५ की टीका में आचार्य पूज्यपाद ने कहा है
१. “एक प्रदेश में होनेवाले स्पर्शादि पर्याय को उत्पन्न करने की सामर्थ्य - रूप से जो 'अण्यन्ते' अर्थात् कहे जाते हैं, वे अणु कहलाते हैं।
८२
तात्पर्य यह है कि अणु एकप्रदेशी होने से सबसे छोटा है, इसलिए वह अणु कहलाता है। यह इतना सूक्ष्म होता है कि जिसका वही आदि है, वही मध्य है और वही अन्त है। कहा भी है
१२. जिसका आदि, मध्य और अन्त एक है तथा जिसे इन्द्रियाँ नहीं ग्रहण कर सकतीं ऐसा जो विभागरहित द्रव्य है, उसे परमाणु समझो । आचार्य कुन्दकुन्द ने नियमसार गाथा २६ में कहा है
-
३. “जो (पृथ्वी, जल, तेज और वायु - इन) चार धातुओं का हेतु है, उसे कारणपरमाणु जानना चाहिए तथा स्कन्धों के अवसान को (पृथक् हुए अविभागी अन्तिम अंश को) कार्यपरमाणु जानना चाहिए।" आचार्य कुन्दकुन्द ने ही पंचास्तिकाय गाथा ७६ में कहा है -
४. "बादर और सूक्ष्मरूप से परिणत स्कन्धों को 'पुद्गल' - ऐसा व्यवहार है; वे छह प्रकार के हैं, जिनसे तीन लोक निष्पन्न है।'
५. इसी ग्रन्थ की गाथा ७५ में 'अविभागी (जिसका दूसरा भाग नहीं होता) पुद्गल को परमाणु कहा है।'
आचार्य जिनसेन ने हरिवंशपुराण, सर्ग ७, श्लोक ३२ में कहा है -
(42)
पुद्गलद्रव्य - विवेचन
६. “जो आदि, मध्य और अन्त से रहित है, निर्विभाग है, अतीन्द्रिय है, वह मूर्त होने पर भी अप्रदेश- द्वितीयादिक प्रदेशों से रहित है, उसे परमाणु कहते हैं। वह परमाणु, एक काल में एक रस, एक वर्ण, एक गन्ध और परस्पर में बाधा नहीं करने वाले दो स्पर्शों को धारण करता है, अभेद्य है, शब्द का कारण है और स्वयं शब्द से रहित है।"
आकाश के एक प्रदेश में एक परमाणु व्यापता है अथवा एक परमाणु से व्याप्त आकाश के विभाग को एक प्रदेश कहते हैं।
आकाश के एक प्रदेश में मात्र एक परमाणु ही स्थान / जगह प्राप्त करता है - ऐसा नहीं । एक प्रदेश में दो परमाणु, तीन, चार, पाँच, संख्यात, असंख्यात, अनन्त परमाणु भी स्थान प्राप्त कर सकते हैं।
इसी तरह एक पुद्गल परमाणु में भी अन्य अनेक, असंख्यात, अनन्त परमाणु को भी जगह देने की सामर्थ्य होती है; इसलिए पुद्गल के प्रदेश संख्यात, असंख्यात तथा अनन्त भी कहे जाते हैं। ७१. प्रश्न स्कन्ध किसे कहते हैं?
उत्तर - दो या दो से अधिक परमाणुओं के बन्ध को स्कन्ध कहते हैं। आचार्य कुन्दकुन्दकृत पंचास्तिकाय ग्रन्थ की गाथा ७५ की टीका में अमृतचन्द्राचार्य ने कहा है- १. 'अनन्तानन्त पुद्गल परमाणुओं से निर्मित होने पर भी जो एक हो, वह 'स्कन्ध' नाम की पर्याय है।'
आचार्य पूज्यपाद ने सर्वार्थसिद्धि शास्त्र में कहा है - २. “जिनमें स्थूल रीति से पकड़ना, रखना आदि व्यापर का सम्बन्ध अर्थात् संघटना होती है, वे स्कन्ध कहे जाते हैं। "
तत्त्वार्थसूत्र के पाँचवें अध्याय के २६वें सूत्र में आचार्य उमास्वामी ने कहा है - ३. “भेद, संघात तथा भेद और संघात ह्न इन दोनों से स्कन्ध उत्पन्न होते हैं।”
परमाणुओं में स्वाभाविकरूप से उनके स्निग्ध व रूक्ष गुणों में