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द्रव्य-गुण- पर्याय में अन्तर
९. द्रव्य - गुणों के समूह को द्रव्य कहते हैं।
गुण
- जो द्रव्य के सम्पूर्ण भागों में और उसकी सम्पूर्ण अवस्था में रहते हैं, उन्हें गुण कहते हैं ।
पर्याय - गुणों के विकार अर्थात् विशेष कार्य को पर्याय कहते हैं।
२. द्रव्य के सत्, वस्तु, अर्थ आदि पर्यायवाची नाम हैं।
गुण - ध्रौव्य, यह गुण का भी पर्यायवाची नाम है।
पर्याय - उत्पाद और व्यय - ये पर्याय के पर्यायवाची नाम हैं।
३. द्रव्य का लक्षण 'उत्पादव्ययध्रौव्ययुक्तं सत्' है । गुण का लक्षण 'ध्रौव्य' है ।
पर्याय का लक्षण 'उत्पाद-व्यय' है।
४. द्रव्य की मुख्य पहचान 'गुण- पर्ययद् द्रव्यम्' है । गुण की मुख्य पहचान उसका सदाकाल बने रहना है। पर्याय की मुख्य पहचान उत्पाद-व्यय करते रहना है।
५. द्रव्य, गुण- पर्यायों से पहचाने जाते हैं।
गुण और द्रव्य, पर्याय से पहचाने जाते हैं।
पर्याय, गुण और द्रव्य की पहिचान कराने वाला है।
६. द्रव्य, गुण पर्यायों के साथ सदा रहते हैं।
गुण, द्रव्य के साथ सदा रहते हैं।
पर्याय, द्रव्य के साथ सदा रहते हुए भी विवक्षित एक पर्याय तो द्रव्य के साथ मात्र एक समय ही रहती है।
७. द्रव्य के माध्यम से अखण्ड द्रव्य का आश्रय लिया जाता है।
गुणों के माध्यम से जीव को प्रत्येक द्रव्य की महिमा आती है। पर्याय के माध्यम से जीव को भेदज्ञान एवं वैराग्य हो सकता है।
८. द्रव्य स्वतंत्र रूप से कर्ता है।
गुण कारण हैं। पर्याय कार्य है।
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द्रव्य-गुण- पर्याय में अन्तर
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९. द्रव्य, वस्तु के विस्तार सामान्य और ऊर्ध्वता सामान्य को द्रव्य कहते हैं । गुण- वस्तु के विस्तार-विशेष को गुण कहते हैं। पर्याय, वस्तु के ऊर्ध्वता-विशेष को पर्याय कहते हैं।
१०. द्रव्य जो निरन्तर आत्मलाभ करता रहता है, वह द्रव्य हैं।
गुण - जो द्रव्य को द्रव्यान्तर से पृथक् करता है, उसे गुण कहते हैं । पर्याय - क्षणस्थायी- सूक्ष्म परिणमन को पर्याय कहते हैं।
११. द्रव्य-गुण- पर्यायों में अभेद स्थापित करने वाले धर्मी को द्रव्य कहते हैं । गुण- द्रव्य में भेद करने वाले धर्म को गुण कहते हैं। पर्याय - गुण के विशेष परिणमन को पर्याय कहते हैं।
१२. द्रव्य - जो सामान्य एवं अन्वयरूप से सदाकाल से अवस्थित रहता है, वह द्रव्य है।
गुण, द्रव्य के सहभावी विशेष हैं।
पर्याय, द्रव्य के व्यतिरेकी अंश हैं।
१३. द्रव्य, द्रव्यार्थिकनय से नित्य है, पर्यायार्थिकनय से अनित्य है और
प्रमाणदृष्टि से नित्यानित्यात्मक है।
गुण, नित्य हैं।
पर्याय, अनित्य होती है। (मेरु पर्वतादि यहाँ गौण हैं ।)
१४. द्रव्य को अन्वय या सामान्य भी कहते हैं।
गुण, द्रव्य के अन्वयी विशेष हैं।
पर्याय, द्रव्य के व्यतिरेकी विशेष हैं।
१५. द्रव्य, गुण- पर्यायों की एकरूप एवं भेदरूप धाराओं में उदासीनरूप से विद्यमान रहता है।
गुण - जिनसे धारा में एकरूपता बनी रहती है, वे गुण कहलाते हैं। पर्याय- जिनसे धारा (गुण) में भेद प्रतीत होता है, वे पर्याय कहलाती हैं।
१६. द्रव्य, स्थायित्व और द्रवणशीलता में समानरूप से स्थित रहता है। गुण- द्रव्य का स्थायित्व, गुण होता है।
पर्याय - द्रव्य (वस्तु) में द्रवणशीलता, पर्याय से होती है।
१७. द्रव्य - जो अपने आप में परिपूर्ण एवं स्वतंत्र रहता है, वह द्रव्य है। गुण - जिससे एक द्रव्य, दूसरे द्रव्य से भिन्न होता है, वह गुण है। पर्याय - गुणों की अवस्थाओं का नाम पर्याय है।