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________________ परिशिष्ट - 2 द्रव्यानुयोग में दोषकल्पना का निराकरण कोई जीव कहता है कि - द्रव्यानुयोग में व्रत, संयमादिक व्यवहारधर्म की हीनता प्रगट की है; सम्यग्दृष्टि के विषय-भोगादि को निजरी का कारण कहा है - इत्यादि कथन सुनकर जीव स्वच्छन्दी बनकर पुण्य छोड़ देगा और पाप में प्रवर्तन करेगा, इसलिए उसे पढ़ना-सुनना योग्य नहीं है। उससे कहते हैं - ___ जैसे, मिसरी खाने से गधा मर जाये तो उससे कहीं मनुष्य तो मिसरी खाना नहीं छोड़ देंगे; उसी प्रकार कोई विपरीतबुद्धि जीव, अध्यात्म ग्रन्थ सुनकर स्वच्छन्दी हो जाता हो, उससे कहीं विवेकी जीव तो अध्यात्म ग्रन्थों का अभ्यास नहीं छोड़ देंगे। हाँ, इतना करेंगे कि जिसे स्वच्छन्दी होता देखें, उसको वैसा उपदेश देंगे, जिससे वह स्वच्छन्दी न हो; और अध्यात्म ग्रन्थों में भी स्वच्छन्दी होने का जगह-जगह निषेध किया जाता है, इसलिए जो उन्हें भलीभाँति सुनता है, वह तो स्वच्छन्दी नहीं होता; तथापि कोई एकाध बात सुनकर अपने अभिप्राय से स्वच्छन्दी हो जाए तो वहाँ ग्रन्थ का दोष नहीं है, किन्तु उस जीव का ही दोष है। पुनश्च, यदि झूठी दोष - कल्पना द्वारा अध्यात्म शास्त्रों के पठन-श्रवण का निषेध किया जाये तो मोक्षमार्ग का मूल उपदेश तो वहीं है! इसलिए उसका निषेध करने से मोक्षमार्ग का निषेध होता है। जैसे मेघवृष्टि होने से अनेक जीवों का कल्याण होता है,
SR No.009453
Book TitleJain Siddhant Prashnottara Mala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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