________________
श्री जैन सिद्धान्त प्रश्नोत्तरमाला
389
प्रश्न 70- औदयिकभाव में जो अज्ञानभाव है और क्षायोपशमिकभाव में जो अज्ञानभाव है - उनमें क्या अन्तर है?
उत्तर - औदयिकभाव में जो अज्ञानभाव है, वह भावरूप होता है और क्षायोपशमिक अज्ञानभाव, मिथ्यादर्शन के कारण दूषित होता है। (मोक्षशास्त्र (हिन्दी) पण्डित फूलचन्दजी द्वारा सम्पादित,
पृष्ठ 31 का फुटनोट) [इन पाँच भावों सम्बन्धी विस्तृत विवरण के लिए मोक्षशास्त्र, अध्याय 2, सूत्र 1 की टीका (सोनगढ़ प्रकाशन) पढ़ना चाहिए।]
प्रश्न 71 - जीव के औपशमिक, क्षायिक, औदयिक, क्षायोपशमिकभावों को पारिणामिकभाव किस अपेक्षा से कहा जाता है?
उत्तर - (1) जीव की पर्याय के प्रत्येक भाव को, वह अपने परिणाम होने से अपनी अपेक्षा से पारिणामिकभाव कहा जाता है।
(2) इन चार भावों को कर्म की अपेक्षा से अर्थात् कर्म के साथ अभाव अथवा सद्भाव सम्बन्ध बतलाने के लिए औपशमिकादि कहा जाता है।
(3) पाँचवें पारिणामिकभाव को, परमपारिणामिक भाव कहा जाता है और उसके आश्रय से ही धर्म का प्रारम्भ, वृद्धि एवम् पूर्णता होती है। (नियमसार गाथा, 13, 15, 41, 110, 119, 178 की टीका
तथा गाथा 178 का कलश नं. 297) [इस सम्बन्ध में प्रकरण 4 में प्रश्न 341 भी देखिये]
प्रश्न 72 - जीव का क्षायिकज्ञान जो वर्तता है उसकी महिमा कहिये?