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उपादान - निमित्त की स्वतन्त्रता
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नहीं है । पर्वत के अनन्त परमाणुओं में उड़ने योग्यता हो तो पर्वत अपने आप उड़ता है, पर्वत को उड़ाने के लिए फूँक की भी आवश्यकता नहीं होती। यहाँ किसी के मन में यह हो सकता है कि 'अरे यह कैसी बात है! क्या पर्वत भी अपने आप उड़ते होंगे ?' किन्तु भाई ! वस्तु में जो काम होता है अर्थात् जो पर्याय होती है, वह उसकी अपनी ही शक्ति से, योग्यता से होती है। वस्तु की शक्तियाँ अन्य की अपेक्षा नहीं रखती । परवस्तु का उसमें अभाव है तो वह क्या करे ?
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उदासीन निमित्त और प्रेरक निमित्त
प्रश्न – निमित्त के दो प्रकार हैं - एक उदासीन, दूसरा प्रेरक । इनमें से उदासीन निमित्त कुछ नहीं करता परन्तु प्रेरक निमित्त तो उदासीन को कुछ प्रेरणा करता है ?
उत्तर - निमित्त के भिन्न-भिन्न प्रकार बताने के लिए यह दो भेद हैं किन्तु उनमें से कोई भी निमित्त, उपादान में कुछ भी नहीं करता अथवा निमित्त के कारण उपादान में कोई विलक्षणता नहीं आती। प्रेरक निमित्त भी पर में कुछ नहीं करता। सभी निमित्त 'धर्मास्तिकायवत्' है।
प्रश्न प्रेरक निमित्त और उदासीन निमित्त की क्या परिभाषा है ?
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उत्तर
उपादान की अपेक्षा से तो दोनों पर हैं, दोनों अकिञ्चित्कर हैं; इसलिए दोनों समान हैं। निमित्त की अपेक्षा से यह दो भेद हैं। जो निमित्त स्वयं इच्छावान या गतिवान होता है, वह प्रेरक निमित्त कहलाता है और जो निमित्त स्वयं स्थिर या इच्छारहित होता है, वह उदासीन निमित्त कहलाता । इच्छावान जीव और
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