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________________ श्री जैन सिद्धान्त प्रश्नोत्तरमाला 247 पराधीन नहीं है कि निमित्त आये तो उपादान का कार्य हो; उपादान का कार्य स्वतन्त्र अपनी ही सामर्थ्य से ही होता है। सूर्य का उदय और छाया से धूप - दोनों की स्वतन्त्रता जिस समय परमाणु की अवस्था में छाया से धूप होने की योग्यता होती है, उसी समय धूप होती है और उस समय सूर्य इत्यादि निमित्तरूप हैं। यह बात मिथ्या है कि सूर्य का उदय हुआ, इसलिए छाया से धूप हो गयी अथवा छाया में से धूप अवस्था होनी थी, इसलिए सूर्य इत्यादि को आना पड़ा - यह बात भी मिथ्या है। सूर्य का उदय हुआ - यह उसकी उस समय की योग्यता है और जो परमाणु छाया से धूप के रूप में हुए हैं - यह उनकी उस समय की वैसी ही योग्यता है। केवलज्ञान और वज्रवृषभनाराचसंहनन की स्वतन्त्रता जब केवलज्ञान होता है, तब वज्रवृषभनाराचसंहनन ही निमित्त होता है, अन्य संहनन नहीं होते, किन्तु ऐसा नहीं है कि वज्रवृषभ -नाराचसंहनन निमित्तरूप है, इसलिए केवलज्ञान हुआ और ऐसा भी नहीं है कि केवलज्ञान के कारण परमाणुओं को वज्रवृषभ -नाराचसंहननरूप होना पड़ा। जहाँ जीव की पर्याय में केवलज्ञान के पुरुषार्थ की जागृति होती है, वहाँ शरीर के परमाणुओं में वज्रवृषभ -नाराचसंहननरूप अवस्था उनकी ही योग्यता से होती है; दोनों की योग्यताएँ स्वतन्त्र हैं, किसी के कारण कोई नहीं है। ___ जब जीव के केवलज्ञान प्राप्त करने की योग्यता होती है, तब शरीर के परमाणओं में वज्रवषभनाराचसंहननरूप अवस्था की ही योग्यता होती है - ऐसा सुमेल स्वभाव से ही है, कोई एक दूसरे के कारण नहीं है।
SR No.009453
Book TitleJain Siddhant Prashnottara Mala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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