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श्री जैन सिद्धान्त प्रश्नोत्तरमाला
कहे कि यह जगत्, कार्य है और ईश्वर उसका कर्ता है - तो यह बात वस्तुस्वरूप की नहीं है । प्रत्येक वस्तु स्वयं ही अपने पर्याय का ईश्वर है और वही कर्ता है; उससे भिन्न दूसरा कोई या अन्य कोई पदार्थ कर्ता नहीं है। पर्याय, वह कार्य और पदार्थ उसका कर्ता । कर्ता के बिना कार्य नहीं और दूसरा कोई कर्ता नहीं है ।
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कोई भी अवस्था हो - शुद्ध अवस्था, विकारी अवस्था या जड़ अवस्था; उसका कर्ता न हो ऐसा नहीं होता तथा दूसरा कोई कर्ता हो - ऐसा भी नहीं होता ।
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प्रश्न - तो क्या भगवान उसके कर्ता हैं ?
उत्तर - हाँ, भगवान कर्ता अवश्य हैं परन्तु कौन भगवान है ? अन्य कोई भगवान नहीं, परन्तु यह आत्मा स्वयं अपना भगवान है, वह कर्ता होकर अपने शुद्ध - अशुद्धपरिणामों का कर्ता है। जड़ के परिणाम को जड़ पदार्थ करता है, वह अपना भगवान है। प्रत्येक वस्तु अपनी अपनी अवस्था की रचयिता ईश्वर है । प्रत्येक पदार्थ अपना / स्व का स्वामी है; उसे पर का स्वामी मानना मिथ्यात्व है।
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संयोग के बिना अवस्था नहीं होती ऐसा नहीं है परन्तु वस्तु परिणमित हुए बिना अवस्था नहीं होती - ऐसा सिद्धान्त है। पर्याय के कर्तृत्व का अधिकार वस्तु का अपना है, उसमें पर का अधिकार नहीं है।
इच्छारूपी कार्य हुआ, उसका कर्ता आत्मद्रव्य है । पूर्व पर्याय में तीव्र राग था, इसलिए वर्तमान में राग हुआ इस प्रकार पूर्व पर्याय में इस पर्याय का कर्तापना नहीं है । वर्तमान में आत्मा वैसे भावरूप परिणमित होकर स्वयं कर्ता हुआ है। इसी प्रकार ज्ञानपरिणाम, श्रद्धापरिणाम, आनन्दपरिणाम, उन सबका कर्ता आत्मा है; पर नहीं ।