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श्री जैन सिद्धान्त प्रश्नोत्तरमाला
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न करते हुए, अपने स्वभाव से अपने परिणाम भावरूप उत्पन्न होते हैं।
(श्री समयसार गाथा 372 की टीका) (5)...लोक में सर्वत्र जो भी जितने-जितने पदार्थ हैं, वे सब निश्चय से (निश्चित्) एकत्व निश्चय को प्राप्त होने से ही सुन्दरता प्राप्त करते हैं क्योंकि अन्य प्रकार से उनमें संकर, व्यतिकर आदि सर्व दोष आ पड़ेंगे। कैसे हैं वे सर्व पदार्थ? अपने द्रव्य में अन्तर्मग्न रहा हुआ अपने अनन्त धर्मों के चक्र को (समूह को) चुम्बते हैं - स्पर्श करते हैं, फिर भी जो परस्पर एक-दूसरे को स्पर्श नहीं करते...
(समयसार, गाथा 3 की टीका) प्रश्न 35 - सम्यग्दृष्टि जीवों का अभिप्राय नरक में जाने का नहीं होता, तथापि कोई सम्यग्दृष्टि नरक में जाता है तो वहाँ जड़कर्म का जोर है; और जड़कर्म जीव को नरक में ले जाता है, इसलिए जाना पड़ता है - यह बात यथार्थ है या नहीं?
उत्तर - (1) यह बात यथार्थ नहीं है। एक द्रव्य, दूसरे द्रव्य का कुछ नहीं कर सकता; इसलिए जड़कर्म, जीव को नरक में ले जाता है - ऐसा नहीं होता।
(2) सम्यग्दृष्टि या मिथ्यादृष्टि कोई जीव नरक में नहीं जाना चाहते, तथापि जो-जो जीव नरकक्षेत्र में जाने योग्य हों, वे-वे जीव अपनी क्रियावतीशक्ति के परिणमन के कारण वहाँ जाते हैं। उस समय कार्मण और तैजस शरीर भी उनकी अपनी (पुद्गल परमाणुओं की) क्रियावतीशक्ति के परिणमन के कारण जीव के साथ उस क्षेत्र में जाते हैं।
(3) अभिप्राय तो श्रद्धागुण की पर्याय है तथा इच्छा, चारित्रगुण