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श्री जैन सिद्धान्त प्रश्नोत्तरमाला
सामान्य गुणों में 'सत्' (अस्तित्व) मुख्य है क्योंकि उसके द्वारा वस्तु का (द्रव्य का) अस्तित्व सिद्ध होता है। यदि द्रव्य हो, तभी दूसरे गुण हो सकते हैं; इसलिए 'सत्' को यहाँ द्रव्य का लक्षण कहा है। ___द्रव्य सत् है, इसलिए वह अपने से है - ऐसा 'सत्' लक्षण कहने से सिद्ध हुआ। उसका अर्थ यह हुआ कि वह स्व-रूप है और पर-रूप से नहीं है। इस प्रकार अनेकान्त' सिद्धान्त से यह सूत्र बतलाता है कि एक द्रव्य स्वयं अपना सबकुछ कर सकता है, किन्तु दूसरे द्रव्य का कभी कुछ नहीं कर सकता।
प्रत्येक द्रव्य 'सत'लक्षणवाला है. इसलिए वह स्वत: सिद्ध है। वह किसी की अपेक्षा नहीं रखता, वह स्वतन्त्र है।
(मोक्षशास्त्र, अध्याय, 5, सूत्र 29 की टीका) (2) एक द्रव्य में भूत, वर्तमान और भविष्य सम्बन्धी जितनी गुणों के परिणमनरूप अर्थपर्यायें तथा द्रव्य के आकारादि परिणमनरूप व्यञ्जनपर्यायें हैं, उतने मात्र को द्रव्य जानना क्योंकि द्रव्य उनसे पृथक् नहीं है। अपनी त्रैकालिक सर्व पर्यायों का समूह, वह द्रव्य है। (गोम्मटसार जीवकाण्ड, गाथा 581)
प्रश्न 61 - सत् का लक्षण क्या है? उत्तर - (1) उत्पाद व्यय ध्रौव्युक्त सत् । अर्थात् जो उत्पाद-व्यय-ध्रौव्यसहित हो, वह सत् है।
(मोक्षशास्त्र, अध्याय 5, सूत्र 30) उत्पाद :- द्रव्य में नवीन पर्याय की उत्पत्ति को उत्पाद कहते हैं; जैसे कि मिट्टी से घड़े का उत्पाद।
व्यय :- पूर्व पर्याय के नाश को व्यय कहते हैं; जैसे - घट