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गुणस्थान-प्रवेशिका
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आवरण = ढकनेवाला।
• जीव के देशसंयमरूप चारित्र परिणामों को आवृत्त करने अर्थात् ढकने में निमित्त होनेवाले कर्म को अप्रत्याख्यानावरण कषाय कर्म कहते हैं।
६०. प्रश्न : प्रत्याख्यानावरण कषाय कर्म किसे कहते हैं ? उत्तर : प्रत्याख्यान + आवरण = प्रत्याख्यानावरण। प्रत्याख्यान = त्याग, महाव्रत, सकलसंयम, सकलचारित्र, संयम।
द्रव्यव्रत अर्थात् बुद्धिपूर्वक शुभोपयोगरूप बाह्य महाव्रतों का ग्रहण । भावव्रत/चारित्र अर्थात् तीन कषाय चौकड़ी के अभाव से व्यक्त होनेवाली वीतरागता।
• जीव के सकलसंयमरूप चारित्र परिणामों को आवृत्त करने में अर्थात् ढ़कने में निमित्त होनेवाले कर्म को प्रत्याख्यानावरण कषाय कर्म कहते हैं।
६१. प्रश्न : संज्वलन कषाय कर्म किसे कहते हैं ?
उत्तर : सम् + ज्वलन = संज्वलन, सम् = अच्छी रीति से । ज्वलन = प्रकाशित होना । जीव के सकलसंयम परिणामों के साथ जो अच्छी तरह से प्रकाशित होती है, रह सकती है। (नष्ट होती है, जलती है)
• जो संकलसंयम परिणामों के घात में निमित्त नहीं होती है; लेकिन सकलसंयम के साथ रहती है, उसे संज्वलन कषाय कहते हैं।
• जीव के यथाख्यातचारित्र परिणामों अर्थात् पूर्ण वीतराग भाव के घात में निमित्त होनेवाले कर्म को संज्वलन कषाय कर्म कहते हैं।
६२. प्रश्न : क्षयोपशम किसे कहते हैं ?
उत्तर : वर्तमानकालीन सर्वघाति स्पर्धकों का उदयाभावीक्षय, भविष्य में उदय में आनेयोग्य सर्वघाति स्पर्धकों का सदवस्थारूप उपशम और वर्तमानकालीन देशघाति स्पर्धकों का उदय, इन तीनरूप कर्म की अवस्था को क्षयोपशम कहते हैं।
६३. प्रश्न : उदयाभावीक्षय किसे कहते हैं ? उत्तर : जब सर्वघाति स्पर्धकों का उदय होता है, तब आत्मा के गुण
महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर की तनिक भी अभिव्यक्ति नहीं होती; इसलिए उस उदय के अभाव को उदयाभावीक्षय कहते हैं।
• आत्मगुणों (पर्यायों) की किंचित् भी अभिव्यक्ति न होने में निमित्त होनेवाले सर्वघाति-स्पर्धकों के उदय के अभाव को उदयाभावीक्षय कहते हैं।
.सर्वघाति स्पर्धक अनंत गुणे हीन हो-होकर अर्थात् उदय के एक समय पूर्व देशघाति स्पर्धकों में परिणत होकर उदय में आते हैं। उन सर्वघाति स्पर्धकों का अनंतगुणहीनत्व ही क्षय कहलाता है। इसे ही स्तिबुक संक्रमण कहते हैं।
६४. प्रश्न : सदवस्थारूप उपशम किसे कहते हैं ?
उत्तर : वर्तमान समय को छोड़कर आगामी काल में उदय आनेवाले कर्मों के सत्ता में रहने को सदवस्थारूप उपशम कहते हैं।
• उदय का अभाव ही अप्रशस्त उपशम है। अनंतानुबंधी का अप्रशस्त उपशम ही होता है।
६५. प्रश्न : अविभागी-प्रतिच्छेद किसे कहते हैं ?
उत्तर : शक्ति के अविभागी अंश को अविभागी-प्रतिच्छेद कहते हैं। अ = नहीं, विभाग = अंश अर्थात् जिसका दूसरा अंश न हो सके, वह अविभागी है। प्रतिच्छेद = शक्ति का अंश।
• द्रव्य में सबसे छोटा परमाणु एवं कालाणु, क्षेत्र की अपेक्षा आकाश का एक प्रदेश, काल की दृष्टि से सबसे छोटा समय और भाव अर्थात् शक्ति की अपेक्षा सब से छोटा अंश अविभागी प्रतिच्छेद है।
६६. प्रश्न : वर्ग किसे कहते हैं ?
उत्तर : समान अविभागी-प्रतिच्छेदों के समूह को वर्ग कहते हैं। चूँकि प्रत्येक परमाणु में अनंत अविभाग-प्रतिच्छेद होते हैं, इसलिए प्रत्येक परमाणु एक वर्ग है।
६७. प्रश्न : वर्गणा किसे कहते हैं ?
उत्तर : समान अविभागी-प्रतिच्छेदों से युक्त वर्गों के समूह को वर्गणा कहते हैं।