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________________ : २,००० प्रथम संस्करण १४ जनवरी, २०१३ पृष्ठ संख्या कहाँ/क्या? विषय पृष्ठ संख्या | विषय प्रकाशकीय संपादकीय भूमिका मिथ्यात्व सासादन मिश्र अविरत देशविरत प्रमत्त अप्रमत्त अपूर्वकरण अनिवृत्तिकरण सूक्ष्मसाम्पराय-उपशान्त क्षीणमोह सयोगकेवली अयोगकेवली संवर-निर्जरा गुणस्थान का सार ४८ मूल्य : ६ रुपये प्रस्तुत संस्करण की कीमत कम करने वाले दातारों की सूची १. श्री अशोककुमार विजयकुमार सुपुत्र श्रीमती कमलप्रभा ध.प. श्रीपालजी बड़जात्या, इन्दौर २. श्रीमती पुष्पलता जैन ध.प. अजितकुमारजी जैन, छिन्दवाड़ा २५१ ३. स्व. श्री शान्तिनाथजी सोनाज, अकलूज ४. श्रीमती रश्मिदेवी वीरेशजी कासलीवाल, सूरत ५. श्रीमती कंचनदेवी ध.प. चिरंजीलालजी कासलीवाल, जयपुर २५१ ६. श्री मानिकचन्दजी जैन, ‘एडपैनवाले', मुम्बई ७. श्री कैलाशचन्दजी जैन, ठाकुरगंज ८. श्री धर्मचन्दजी जैन, जबलपुर ९. श्रीमती अंजनादेवी जैन, बारां १०. श्रीमती सरोजदेवी राहुल जैन, जयपुर मुद्रक : |११. श्रीमती पानादेवी मोहनलालजी सेठी, गोहाटी श्री प्रिन्टर्स |१२. स्व. धापूदेवी ध.प. स्व. ताराचन्दजी गंगवाल मालवीयनगर, जयपुर की पुण्य स्मृति में कुल राशि २,६११ प्रकाशकीय कविवर पण्डित बनारसीदास विरचित समयसार नाटक में गर्भित गुणस्थान को अलग पुस्तकरूप में प्रकाशित करते हुए हमें विशेष आनन्द हो रहा है। श्री टोडरमल दिगम्बर जैन सिद्धान्त महाविद्यालय के शास्त्री प्रथम वर्ष के अभ्यासक्रम में पढ़ाने का अवसर मुझे सौभाग्य से अनेक वर्षों से मिला हुआ है? इसके पहले अगस्त एवं अक्टूबर माह में लगने वाले शिविर में भी यह विषय लेने का अवसर मुझे मिलता रहा है। समाज में अनेक नगरों में भी गुणस्थान विषय को जिज्ञासुओं के अनुरोध के अनुसार समझाने का सुअवसर मिलता रहा है। इस कारण जहाँ भी आगम में गुणस्थान का विषय आता है तो उसे बारीकी से देखने का मेरा भाव बना रहा। इसी क्रम में समयसार-नाटक में आया हुआ गुणस्थान अधिकार सूक्ष्मता से पढ़ा । गुणस्थान के विषय को समझने के लिए विषय उपयोगी लगा; इसलिए इसे प्रकाशित करने का मानस बना है। पिछले माह में ही ट्रस्ट ने श्री तारण-तरण स्वामीजी विरचित ज्ञानसमुच्चयसार में समागत गुणस्थान विषय को पुस्तकरूप में प्रकाशित किया है, जो पाठकों तक अध्ययनार्थ पहुँच ही चुका है, जिनको नहीं मिला हो मंगाकर अध्ययन अवश्य करें। ___ इस कृति का कम्पोज करने का कार्य श्री कैलाशचन्दजी शर्मा ने किया है तथा इसे आकर्षक रूप से छपाना एवं कवर पेज को सौन्दर्य के साथ तैयार करना आदि कार्य प्रकाशन विभाग के प्रभारी श्री अखिलजी बंसल ने बखूबी निभाया है एवं दातारों का सहयोग भी उल्लेखनीय है, अतः इन सबको अनेकशः धन्यवाद । - ब्र. यशपाल जैन, एम.ए. प्रकाशन मंत्री पण्डित टोडरमल स्मारक ट्रस्ट, जयपुर जयपुर
SR No.009450
Book TitleGunsthan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2013
Total Pages25
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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