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समयसारनाटक- गर्भित गुणस्थान
अर्थ- दर्शन गुण (सम्यक्त्वरूप परिणाम) की निर्मलता, अष्ट मूलगुणों का' ग्रहण और सात कुव्यसनों का त्याग, इसे दर्शन प्रतिमा कहते हैं ।। ५९ ।। व्रत प्रतिमा का स्वरूप (दोहा)
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पंच अनुव्रत आदरै, तीनों गुनव्रत पाल । सिच्छाव्रत चारों धरै, यह व्रत प्रतिमा चाल ||६० ॥ अर्थ - पाँच अणुव्रत, तीन गुणव्रत और चार शिक्षाव्रत के धारण करने को व्रत प्रतिमा कहते हैं।
विशेष – यहाँ पंच अणुव्रत का निरतिचार पालन होता है; पर गुणव्रत और शिक्षाव्रतों के अतिचार सर्वथा नहीं टलते ।। ६० ।। सामायिक प्रतिमा का स्वरूप (दोहा)
दर्व भाव विधि संजुगत, हियै प्रतिग्या टेक । तजि ममता समता ग्रहै, अंतरमुहूरत एक ॥। ६१ ।। (चौपाई)
जो अरि मित्र समान विचारै ।
आरत रौद्र कुध्यान निवारै ॥
संयम सहित भावना भावै ।
सो सामायिकवंत कहावै ॥ ६२ ॥
शब्दार्थ : :- दर्व विधि = बाह्य क्रिया आसन, मुद्रा, पाठ, शरीर और वचन की स्थिरता आदि की सावधानी । भावविधि = मन की स्थिरता और परिणामों में समता भाव का रखना। प्रतिज्ञा = आखड़ी। अरि = शत्रु । कुध्यान = खोटा विचार निवारै= दूर करे।
अर्थ - मन में समय की प्रतिज्ञापूर्वक द्रव्य और भावविधि सहित एक मुहूर्त्त अर्थात् दो घड़ी तक ममत्वभावरहित साम्यभाव ग्रहण करना, १. (१) पंचपरमेष्ठी में भक्ति, जीवदया, पानी छानकर काम में लाना, मद्य त्याग, मांस त्याग, मधु त्याग, रात्रिभोजन त्याग और उदम्बर फलों का त्याग, ये आठ मूलगुण हैं। (२) कहीं-कहीं मद्य, मांस, मधु और पाँच पाप के त्याग को अष्ट मूलगुण कहा है। (३) कहीं कहीं पाँच उदंबर फल और मद्य, माँस, मधु के त्याग को मूलगुण बतलाये हैं।
२. 'सर्व' ऐसा भी पाठ है।
३. चौबीस मिनिट की एक घड़ी होती है।
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देशविरत गुणस्थान
शत्रु और मित्र पर एकसा भाव रखना, आर्त और रौद्र दोनों कुध्यानों का निवारण करना और संयम में सावधान रहना; सामायिक प्रतिमा कहलाती है ।। ६१-६२ ।।
चौथी प्रतिमा का स्वरूप (दोहा)
सामायिक की दसा, च्यारि पहर लौं होइ । अथवा आठ पहर रहें, पोसह प्रतिमा सोइ ॥ ६३ ॥ अर्थ - बारह घंटे अथवा चौबीस घंटे तक सामायिक जैसी स्थिति
अर्थात् समताभाव रखने को प्रोषध प्रतिमा कहते हैं ।। ६३ ।। पाँचवीं प्रतिमा का स्वरूप (दोहा)
जो सचित्त भोजन तजै, पीवै प्राशुक नीर ।
सो सचित्त त्यागी पुरुष, पंच प्रतिग्या गीर ||६४ ॥ अर्थ - सचित्त भोजन का त्याग करना और प्रासुक जल पान करना, उसे सचित्तविरति प्रतिमा कहते हैं। विशेष - यहाँ सचित्त वनस्पति को मुख से विदारण नहीं करते ।। ६४ ।।
छठवीं प्रतिमा का स्वरूप (चौपाई) जो दिन ब्रह्मचर्य व्रत पालै ।
तिथि आये निसि दिवस संभालै ॥ गहि नौ बाड़ि करै व्रत रख्या ।
सो षट् प्रतिमा श्रावक अव्या ||६५ || अर्थ :- नव बाड़ सहित दिन में ब्रह्मचर्य व्रत पालन करना और पर्वतिथियों में दिन-रात ब्रह्मचर्य सम्हालना, दिवामैथुनव्रत प्रतिमा है ।। ६५ ।। सातवीं प्रतिमा का स्वरूप (चौपाई) जो नौ बाड़ सहित विधि साधै।
निसि दिन ब्रह्मचर्य आराधै ॥
सो सप्तम प्रतिमा धर ग्याता ।
सील - सिरोमनि जगत विख्याता ||६६ ॥ अर्थ :- जो नव बाड़ सहित सदाकाल ब्रह्मचर्य व्रत पालन करता है, १. गर्म किया हुआ या लबंग इलायची राख आदि डालकर स्वाद बदल देने से पानी प्रासुक होता है।