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गागर में सागर
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इस तरह गहराई में जाकर विचार करने पर स्पष्ट हो जाता है कि द्वेषमूलक हिंसा भी मूलत: रागमूलक ही है।
यद्यपि 'राग' शब्द बहुत व्यापक है, उसमें प्रात्मा में उत्पन्न होने . वाले सभी विकारीभाव समाहित हो जाते हैं । मिथ्यात्व सहित सम्पूर्ण मोह को, जिसमें द्वेष भी सम्मिलित है, राग कहा जाता है; तथापि यहाँ 'राग' शब्द के साथ 'आदि' शब्द का प्रयोग करके द्वेषादि विकारों का पृथक रूप से भी संकेत कर दिया है।
__ यदि कोई कहे कि 'रागादि' के स्थान पर 'द्वेषादि' शब्द का प्रयोग किया जाता तो कोई विवाद नहीं रहता; क्योंकि द्वेष को तो हिंसा का कारण सभी मानते हैं । ऐसी स्थिति में राग 'पादि' शब्द में समाहित हो ही जाता। इसतरह हम अपनी बात भी रख देते और दुनियाँ को वह खटकती भी नहीं।
अरे, भाई ! यदि 'राग' शब्द का उल्लेख स्पष्ट रूप से न होता तो राग में धर्म माननेवाले लोग उसे हिंसा स्वीकार ही न करते; अतः बात अस्पष्ट ही रह जाती । यही कारण है कि यहाँ 'राग' शब्द का स्पष्ट उल्लेख किया गया है और द्वेषादि को 'पादि' शब्द में समाहित किया गया है। वक्र और जड़ शिष्य संकेतों की भाषा से नहीं समझते, उनके लिए तो जितनी अधिक स्पष्टता की जाय, उतनी ही कम है ।
इतनी सावधानी रखने पर भी लोग यह कहते देखे जाते हैं कि राग से तात्पर्य मात्र अशुभराग से है, तीव्रराग से है; शुभराग और मन्दराग से नहीं।
पर भाई ! इतना तो सोचो कि जब भगवान महावीर ने हिसा की परिभाषा में 'राग' शब्द का प्रयोग किया होगा, क्या तब उन्हें उसके व्यापक अर्थ का ध्यान न रहा होगा ? क्या वे यह नहीं जानते होंगे कि गग दो प्रकार का होता है :- शुभ और अशुभ अथवा मंद और तीव्र ?
___ इस पर कुछ लोग कहते हैं कि विषय-कषाय का राग हिंसा है - यह तो ठीक है, पर धर्मानुराग को हिंसा कैसे कहा जा सकता है ?
भाई ! राग तो राग है, वह किसके प्रति है - इससे उसके रागपने में क्या अन्तर पड़ता है ? जिस धर्मानुराग को तुम हिंसा की परिधि से बाहर रखना चाहते हो, उसी धर्मानुराग ने विश्व में कितनी खन की नदियों बहाई हैं - क्या इसकी जानकारी नहीं है पापको ?