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गागर में सागर
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वहाँ की एक सभा में भगवान महावीर के इसी अहिंसा सन्देश को हम जनता जनार्दन तक पहुँचा रहे थे कि अध्यक्ष पद पर विराजमान महानुभाव बोले :
"यह तो ठीक, पर आप तो यह वताइये कि यह हिंसा रुके कैसे ?"
हमने कहा :- "हाँ, बताते हैं; यह भी बताते हैं । सुनिये तो सही ! इस गुजरात प्रान्त में शराबबन्दी लागू है, फिर भी लोग शराब तो पीते ही हैं । ग्रत्र प्राप ही बताइये कि यह शराबबन्दी सफल कैसे हो ?"
हमने अपनी बात को विस्तार देते हुए कहा कि :
"एक उपाय तो यह है कि बाजार में कोई व्यक्ति शराब पीकर डोलता हो तो उसे पुलिसवाले पकड़ लें, दो-चार चांटा मारें, जेब में दशबीस रुपये हों, उन्हें छीनकर छुट्टी कर दें; तो क्या शराबवन्दी सफल हो जावेगी ?"
"नहीं, कदापि नहीं ।"
"तो क्या करना होगा ? "
" जबतक उन होटलों पर छापा नहीं मारा जायगा, जिन होटलों में यह अवैध शराब बिकती है, तबतक सफलता मिलना संभव नहीं है ।"
"हाँ, यह बात तो ठीक है; पर पुलिस उन होटलों पर छापा मारे, दश-बीस बोतल शराब मिले, मिल-बाँट कर उसे पी लें और दोचार सौ रुपये लेकर उसकी छुट्टी कर दें तो भी क्या शराबबन्दी मफल हो जावेगी ?"
"नहीं, इससे भी कुछ होनेवाला नहीं है ।"
"तो क्या करना होगा ?"
" जबतक उन अड्डों को बर्बाद नहीं किया जायगा, नष्ट-भ्रष्ट नहीं किया जायगा, जिन अड्डों पर लुक-छिपकर यह अवैध शराव बनाई जाती है, तबतक सफलता मिलना असंभव ही है; क्योंकि यदि अड्डों पर शराब बनेगी तो मार्केट (बाजार ) में आयेगी, आयेगी, अवश्य श्रायेगी; जायेगी कहाँ ? जब मार्केट में आयेगी तो लोगों के पेट में भी जायेगी, अन्यथा जायेगी कहाँ ? जब लोगों के पेट में जायेगी तो उनके माथे में भी भन्नायेगी ही ।