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________________ ५८ गाथा ६७ पर प्रवचन जिसके भटक जाने की, अटक जाने की संभावना होती है, उसे लोक में भी यहाँ-वहाँ नहीं जाने दिया जाना है, पर जिसके भटकने की संभावना नहीं है, उसे कहीं भी जाने की छूट रहती है । एक बार मैंने शिखरजी की यात्रा पर जाने का निश्चय किया । पता चलते ही हमारे पड़ोस के ही एक भाई पाये और बोले : "हमने सुना है, आप शिखरजी जा रहे हैं ?" मैंने कहा - "मुना तो आपने ठीक ही है।" वे तपाक में बोले - "हमारी अम्माजी को भी साथ ले जायो, उनकी भी यात्रा हो जायेगी। आपमे अच्छा साथ कहाँ मिलेगा ?" मैंने कहा - "आप भी चलिये न? अम्माजी भी चलें और आप भी चलें । सभी चलें हमारे माथ, हमें क्या तकलीफ है ? सबको स्वयं ही तो जाना है।" वे बोले - "हमें तो फुरसत नहीं है और बहू-बेटी को अकेले भेजना ठीक नहीं है; अतः सोचा अम्माजी को तो भेज ही दें।" उनकी यह बात सुनकर मुझे वड़ा ही अटपटा लगा। अम्माजी अकेली जा सकती हैं, पर बह-बेटी नहीं। जरा श्राप भी विचार कीजिये न? जो चार कदम भी बिना सहारे के नहीं चल सकतो, उन अम्माजी को अकेली शिखरजी भेजा जा सकता है, पर जो जूडो-कराटे की मास्टर हैं, वह बहू-बेटी अकेली नहीं भेजी जा सकती। मैंने झंझलाते हुए उनम कहा - "पाप क्या कह रहे हैं ? वह-बेटी को अकेली भेजना ठीक नहीं और अम्माजी को भेजना ठीक है?" वे समझाते हुए बोले - "अम्मा अकेली कहां जा रही है, वह तो आपके साथ ही जावेगी न !" ____ मैंने गुस्से में कहा - "और बहू ?" वे एकदम मन्नाटे में आ गये, उनको समझ में ये पा ही नहीं रहा था कि वह की भी अकेली जाने की क्या बात है ? पर वे भी बिचारे क्या करें? उनकी समझ ही इतनी थी। . शिखरजी तो बहुत दूर, पर गांव के मन्दिर भी भेजना हो तो बहू के साथ सास मन्दिर जावेगी, उसे अकलो मन्दिर भी नहीं जाने दिया जावेगा और अम्माजी को शिखरजी भी अकेले भेजा जा सकता है । • जगन का यह व्यवहार मेरी समझ में परे है ।
SR No.009449
Book TitleGagar me Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1998
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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