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प्रकाशकीय
(पंचम संस्करण) डॉ. हुकमचन्द भारिल्ल के प्रवचनों पर आधारित 'गागर में सागर पुस्तक का यह पंचम संस्करण प्रकाशित करते हुए हमें हार्दिक प्रसन्नता का अनुभव हो रहा है। अबतक चार संस्करणों के माध्यम से इसकी 18 हजार 600 प्रतियाँ प्रकाशित हो चुकी हैं। यह पाँचवां संस्करण 5 हजार की संख्या में मुद्रित किया जा रहा है। इसप्रकार यह कृति 23 हजार 600 की संख्या में समाज के हाथों में पहुंच जाएगी। . डॉ. भारिल्ल के प्रवचनों को सम्पादित कर प्रकाशित करने का यह प्रथम प्रयास था; जो पूर्णतः सफल रहा तथा भरपूर सराहा गया । इस कृति के अन्त में प्रकाशित भगवान महावीर और उनकी अहिंसा' नामक प्रवचन की लोकप्रियता को देखते हए हमने उसे 'अहिंसाः महावीर की दृष्टि में नाम से पृथक से प्रकाशित किया है। जिसे हिन्दी, अंग्रेजी, मराठी व गुजराती भाषा में 85 हजार की संख्या में विविध संस्करणों के माध्यम से अब तक प्रकाशित किया जा चुका है।
डॉ. भारिल्ल उन प्रतिभाशाली विद्वानों में से हैं; जो आज सर्वाधिक सुने और पढ़े जाते हैं। वे न केवल लोकप्रिय प्रवचनकार एवं कुशल अध्यापक ही हैं; अपितु सिद्धहस्त लेखक, कुशल कथाकार, सफल सम्पादक एवं आध्यात्मिक कवि भी हैं। . साहित्य व समाज के प्रत्येक क्षेत्र में उनकी गति अबाध है। तत्वप्रचार
की गतिविधियों को निरन्तर गति प्रदान करने वाली उनकी नित नई सूझ-बूझ, अद्भुत प्रशासनिक क्षमता एवं पैनी पकड का ही परिणाम है कि आज जयपुर आध्यात्मिक गतिविधियों का प्रमुख केन्द्र बन गया है।
आपने 'क्रमबद्धपर्याय' 'परमभावप्रकाशक नयचक्र' तथा 'समयसार अनुशीलन' जैसी गूढ़ दार्शनिक विषयों को स्पष्ट करने वाली कृतियाँ भी लिखी; जिन्होंने आगम एवं अध्यात्म के गहन रहस्यों को सरल भाषा एवं सुबोध शैली में प्रस्तुत कर पूज्य श्री कानजी स्वामी द्वारा व्याख्यायित जिन सिद्धान्तों को जन-जन तक पहुँचाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। यही कारण है कि पूज्य स्वामीजी की उन पर असीम कृपा रही । वे अत्यन्त स्पष्ट शब्दों में कहा करते थे कि 'पण्डित किमचन्द का वर्तमान तत्त्व प्रचार में बडा हाथ है।'
उत्तम क्षमादि दश धर्मों का विश्लेषण जिस गहराई से आपने 'धर्म के शिलक्षण' पुस्तक में किया है, उसने जन सामान्य के साथ-साथ विद्वद्वर्य का भी