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अभिमत यह संकलन जैनेतर वर्गों के लिए श्लाघनीय प्रयास का उद्धरण है । प्रो. उदयचन्दजी, सर्वदर्शनाचार्य, हिन्दू विश्वविद्यालय ; वाराणसी (उ.प्र.)
इसमें सन्देह नहीं कि डॉ. भारिल्ल की प्रत्येक कृति एक अनोखी छवि को लिए हुए होती है । 'गागर में सागर भी इसीप्रकार की एक कृति है ।
श्री तारणतरण स्वामी द्वारा रचित 'ज्ञानसमुच्चयसार की चार गाथाओं पर डॉ. भारिल्ल द्वारा प्रदत्त प्रवचनों का इसमें संकलन किया गया है । वास्तव में इन प्रवचनों में अध्यात्मरस के सागर को गागर में भर दिया गया है । जो व्यक्ति अध्यात्म रस के सागर में गोता नहीं लगा सकता, वह गागर में सागर को पढकर अध्यात्मरस का आनन्द सरलता से ले सकता है ।
इस पुस्तक के अन्त में डॉ. भारिल्ल के 'भगवान महावीर और उनकी अहिंसा' नामक व्याख्यान को सम्मिलित कर देने से पुस्तक का महत्व और भी बढ गया है ।
यह पुस्तक अत्यन्त रुचिकर, उपादेय, पठनीय तथा संग्रहणीय है। यशपालजी जैन, सम्पादक-जीवन साहित्य, सस्ता साहित्य मण्डल ; नई दिल्ली ___ ज्ञान समुच्चयसार की चार गाथाओं तथा 'भगवान महावीर और उनकी अहिंसा' पर डॉ. भारिल्ल के प्रवचनों का यह संग्रह वास्तव में अपने नाम को सार्थक करता है । गाथाओं का चुनाव बडे सुन्दर ढंग से किया है और उनका विवेचन भी इसप्रकार किया है कि सामान्य शिक्षित पाठक भी उन्हें समझ सके । गूढ तत्त्वज्ञान को सरल एवं रोचक शैली में प्रस्तुत कर बड़ी ही सुबोध बना दी है ।
'भगवान महावीर और उनकी अहिंसा' के सम्बन्ध में भारिल्लजी के विचार प्रेरणादायक है ।