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सम्पादकीय ही कहना ठीक होगा। जो गहन व मनोहर भाव उनमें भरे हैं, उनका उक्त अटपटी शैली के कारण पूरा लाभ उठाया जाना कठिन है ।''
स्वर्गीय पं० परमेष्ठीदासजी का भी इस संबंध में यही मत है :
............"जिन्होंने अपनी निराली भाषा शैली में उच्चतम आध्यात्मिक तत्त्वों का निरूपण किया । ..............."उन श्री तारण स्वामी द्वारा रचित सूत्रों और गाथाओं का यथार्थ अर्थ समझ पाना कठिन काम है, क्योंकि उनकी भाषा-शैली अलग प्रकार की है।........ ....... वर्तमान युग में आध्यात्मिक महापुरुषों में श्री कानजी स्वामी का नाम प्रमुख है, उन्होंने श्री तारणस्वामी के अध्यात्म ज्ञान की महिमा गायी है और उनकी अध्यात्म वाणी पर प्रवचन भी किये हैं, जो अष्टप्रवचन के नाम से दो भागों में प्रकाशित भी हो चुके हैं ।"२
प्रस्तुत "गागर में सागर" पुस्तक उन्हीं परमपूज्य श्री जिन तारण तरण स्वामी विरचित ज्ञानसमुच्चयसार ग्रन्थ की कतिपय महत्त्वपूर्ण . गाथाओं पर हुये डॉ० हुकमचन्द भारिल्ल के प्रवचनों का संकलन है ।
इसी वर्ष तारण जयन्ती के अवसर पर डॉ० भारिल्ल द्वारा सागर में ये प्रवचन हये थे, श्रीमन्त सेठ भगवानदासजी की भावना के अनुसार उनके ज्येष्ठ पुत्र, लोकसभा सदस्य श्री डालचन्दजी जैन ने इस पुस्त. का सम्पादन करने के लिए मुझसे अनुरोध किया। मुझे प्रसन्नता है कि इस निमित्त से मुझे श्री जिन तारणस्वामी को भी निकट से समझने का अवसर मिला।
ज्ञानसमुच्चयसार की कतिपय महत्त्वपूर्ण गाथाओं पर हुये डॉ. भारिल्ल के प्रस्तुत प्रवचनों को पढ़कर ऐसा लगा कि अहो! ऐसी महान आध्यात्मिक गूढ़तम गाथायें, जिन्हें जनसाधारण के द्वारा समझ पाना अत्यन्त कठिन कार्य है, उन्हें इतनी सरल भाषा और मुबोध शैली में जन साधारण के गले उतार देना हर एक के वश की बात नहीं है। डॉ० भारिल्ल जैसा ही कोई कुशल प्रतिभावान समर्थ प्रवचनकार इस दुरूह कठिन कार्य को कर सकता है ।
कुन्दकुन्द और अमृतचन्द्र जैसे प्राचार्यों को समझना फिर भी आसान है, क्योंकि उनकी भाषा व्याकरण-सम्मत विशुद्ध प्राकृत और १ तारणतरण श्रावकाचार भूमिका, पृष्ठ ४ (सन् १९४०) २ ज्ञानसमुच्चयसार की भूमिका