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१६३. ज्ञान सर्वसमाधानकारक है तथा उसका सर्वत्र ही अबाध
प्रवेश है। १६४. ढ़ाई अक्षर के आत्मा को जान लेना ही ज्ञान है, पाण्डित्य है। १६५. ज्ञानस्वभावी आत्मा, ज्ञान से ही प्राप्त होगा; धन से नहीं। १६६. दुःख का मूल कारण स्वयं को न जानना, न पहचानना
ही है। १६७. इन्द्रियज्ञान आत्मज्ञान में साधक नहीं; बल्कि बाधक ही है। १६८. जगत में ऐसा कौनसा प्रमेय है, जो सतर्क प्रज्ञा को
अगम्य हो ? १६६. स्वतंत्रता ज्ञान से नहीं, अपने अज्ञान से खण्डित होती है। २००. राग-द्वेष कम करने का सरलतम उपाय अपने सुख-दुःख
के कारण अपने में ही खोजना है, मानना है, जानना है। २०१. विरोध वस्तु में नहीं अज्ञान में है।
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