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११३. परमसत्य की स्वीकृति ही भगवती अहिंसा की सच्ची
आराधना है। ११४. वीरता हिंसा की पर्याय नहीं, अहिंसा का स्वरूप है। ११५. हिंसात्मक प्रवृत्तियों से देश और समाज नष्ट होते हैं। ११६. द्वेषमूलक हिंसा भी मूलतः रागमूलक ही है। ११७. जीवदया जैनाचार का मूल आधार है। ११८. जैनाहार विज्ञान का मूल आधार अहिंसा है। ११६. अंडे को शाकाहारी बताना अंडे के व्यापारियों का षड्यंत्र
है, जिसके शिकार शाकाहारी लोग हो रहे हैं। १२०. भगवान जन्मते नहीं, बनते हैं। १२१. भगवान की शरण मेंजानेवाले भगवानदास बनते हैं, भगवान नहीं। १२२. तीर्थंकर भगवान वस्तुस्वरूप को जानते हैं, बताते हैं; बनाते नहीं।
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