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________________ 65 श्री पूरनचन्दजी गोदीका तक वे उसी का चिन्तन-मनन करते रहे और उन्होंने अत्यन्त जागृत अवस्था में प्राणों का विसर्जन किया। उन्होंने वर्षों से रात्रि में पानी भी नहीं लिया था और अभक्ष्य-भक्षण तो उनके जीवन में था ही नहीं। जीवन के अन्तिम वर्षों में किसी भी प्रकार की दवा न लेने का संकल्प भी उन्होंने कर लिया था। ____नाम के लिए दान देनेवालों की तो समाज में आज कमी नहीं है। आज ऐसे लोग तो गली-गली में मिल जायेंगे, जो अपने या अपने माँ-बाप के, पति. के या पत्नी के या बाल-बच्चों के नाम पर संस्थाओं का, संस्थानों का, मन्दिरों का, धर्मशालाओं का, पाठशालाओं का, विद्यालयों का, महाविद्यालयों का, अस्पतालों का नाम रखने की कीमत पर लाखों रुपये खर्च करने को तैयार हैं; पर गोदीकाजी जैसे दानियों के दर्शन आज दुर्लभ ही हैं, जिन्होंने जमीन भी स्वयं खरीदी और उस पर पूरा स्मारक भवन और उसके अगल-बगल में ३६ कमरे, जिनालय, कार्यालय, भोजनालय, तलघर, विद्वनिवास, सार्वजनिक प्याऊ, गैरेज, कुआँ एवं अतिथिगृह बनाकर ट्रस्ट को समर्पित कर दिया और उस पर कहीं भी अपना नाम तक न लिखाया। इतना ही नहीं वर्षों तक इसका मासिक आर्थिक व्यय भी स्वयं ही वहन करते रहे, पर काम करने वाले अधिकारियों, कार्यकर्ताओं, कर्मचारियों, लाभ लेने वाले आगन्तुकों को कभी यह आभास भी नहीं हुआ कि हमारे बीच में कोई ऐसा आदमी भी निरन्तर रह रहा है, जिसकी ही यह सब कुछ माया है। ___ नाम व अधिकार की भावना तो उनमें रंचमात्र भी न थी, पर यह चिन्ता उन्हें जीवन के अन्तिम क्षणों तक रही कि यह हरी-भरी संस्था, जो वीतरागी तत्त्वज्ञान का आज केन्द्र बनी हुई है, असमय में ही उजड़ न जाये, लोगों की दुर्भावनाओं की शिकार न हो जावे। वे जीवन के अन्तिम क्षण तक यह मंगल कामना करते रहे कि जिसमें उनका सबकुछ समर्पित है, वह पण्डित टोडरमल स्मारक ट्रस्ट युग-युग तक इसी तरह फलता-फूलता रहे, युग-युग तक इसी मार्ग पर चलता रहे, जिस मार्ग पर वह आज तक चलता रहा है; युग-युग तक उसी रीति-नीति को अपनाता रहे, जिस रीति-नीति को आजतक अपनाये रहा है और युग-युग तक वीतरागी तत्त्वज्ञान को उसीतरह जन-जन तक पहुँचाता रहे, जिसतरह आज तक पहुँचाता रहा है।
SR No.009446
Book TitleBikhare Moti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla, Yashpal Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2001
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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