________________
सम्यक्त्व और मिथ्यात्व
211 ___ जैनदर्शन में सम्यक्त्व का स्थान सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है । यह मुक्ति महल की प्रथम सीढ़ी है। इसके बिना ज्ञान और चारित्र का सम्यक् होना संभव नहीं है। जिसप्रकार बीज के बिना वृक्ष की उत्पत्ति, स्थिति, वृद्धि और फलागम संभव नहीं है; उसीप्रकार सम्यग्दर्शन के बिना सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र की उत्पत्ति, स्थिति, वृद्धि और फलागम (मोक्ष) होना संभव नहीं है।' सम्यग्दर्शन धर्म का मूल है। जो इससे भ्रष्ट है, वह भ्रष्ट ही है; उसको मुक्ति की प्राप्ति संभव नहीं है। ___ अधिक क्या कहें? जो महान पुरुष अतीतकाल में मोक्ष गए हैं, अभी जा रहे हैं और भविष्य में जायेंगे; यह सब सम्यग्दर्शन का ही माहात्म्य है।
आचार्य समन्तभद्र ने तो यहाँ तक कहा है कि प्राणियों को इस जगत में सम्यग्दर्शन के समान हितकारी और मिथ्यादर्शन के समान अहितकारी कोई अन्य नहीं है।
अत: जैसे भी हो, प्रत्येक सुखाभिलाषी व्यक्ति को सम्यग्दर्शन प्राप्त करने का प्रयत्न अवश्य करना चाहिए।
१. छहढाला : पं. दौलतराम, तृतीय ढाल, छन्द १७ २. रत्नकरण्ड श्रावकाचार : आचार्य समन्तभद्र, श्लोक ३२ ३. आचार्य कुन्दकुन्द : अष्टपाहुड (दर्शनपाहुड) गाथा ३ ४. आचार्य कुन्दकुन्द : अष्टपाहुड (मोक्षपाहुड) गाथा ८८ ५. आचार्य समन्तभद्र : रत्नकरण्ड श्रावकाचार, श्लोक ३४
श्रद्धा • ज्ञान से भी अधिक महत्त्व श्रद्धान का है, विश्वास का है, प्रतीति का
आत्मा ही है शरण, पृष्ठ-७८ • आत्मानुभूति (निश्चय) पूर्वक, शास्त्राधार पर की गई तर्क-सम्मत
श्रद्धा ही सच्ची व्यवहार श्रद्धा है। मैं कौन हूँ, पृष्ठ-१५ • श्रद्धा ही आचरण को दिशा प्रदान करती है।
आत्मा ही है शरण, पृष्ठ-११२