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अशुचिभावना : एक अनुशीलन
उक्त छन्द में देह से विरक्ति और आत्मस्वरूप में अनुरक्ति की बात तो अत्यन्त स्पष्टरूप से कही ही गई है; पर एक नई बात और भी कही गई है, जो सहजरूप से अन्यत्र देखने में नहीं आती। इसमें देह के भी परदेह और स्वदेह - ऐसे दो भेद कर दिये गये हैं ।
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एक क्षेत्रावगाही निकटवर्ती संयोगी पदार्थ होने के कारण निजदेह में तो सामान्यजनों का सहज स्नेह पाया ही जाता है, पर स्पर्शनादि इन्द्रियों के उपभोग की वस्तु होने से स्त्री आदिक के शरीर में भी राग होता ही है ।
स्पर्शनादि इन्द्रियों के विषयों से विरक्ति उत्पन्न करने के उद्देश्य से स्त्री आदिक की देह की अपवित्रता का भी दिग्दर्शन कराया जाता रहा है । ब्रह्मचर्य धर्म की पूजा के प्रसंग में दशलक्षणपूजन में भी इसप्रकार का एक छन्द प्राप्त होता है, जो कि इसप्रकार है
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" कूरे तिया के अशुचि तन में, कामरोगी रति करे । बहु मृतक सड़हिं मसान माँहिं, काग ज्यों चोंचे भरे ॥
कामवासना से पीड़ित व्यक्ति स्त्रियों के अपवित्र शरीर में अनुराग करता है और वह उस अपवित्र शरीर के साथ इसप्रकार का व्यवहार करता है कि जिसप्रकार कौआ श्मशान में पड़े हुए सड़े मृतक कलेवर में बार-बार चोंचे मार कर करता है ।
उक्त सन्दर्भ में 'पद्मनन्दि पञ्चविंशति' का निम्नांकित छन्द भी द्रष्टव्य है
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"यूकाधाम कचाः कपालमजिनाच्छन्नं मुखं
योषितां । तच्छिद्रे नयने कुचौ पलभरौ बाहू तते कीकसे ॥ मूत्रमलादिसद्म जघनं प्रस्यन्दिवर्चो गृहं । महतां महतां रागाय संभाव्यते ॥ १
तुन्दं
पादस्थूणमिदं किमत्र
जिनके बाल जुओं के घर हैं, कपाल और चेहरा चमड़े से आच्छादित है, दोनों नेत्र उस चेहरे के छिद्र हैं, दोनों स्तन माँस से भरे हुए हैं, दोनों भुजायें हड्डियाँ हैं, उदर मलमूत्रादि का स्थान है, जंघा प्रदेश बहते हुए मल का घर
१. पद्मनन्दि पंचविंशति : अध्याय १२, छन्द १५