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एकत्वभावना : एक अनुशीलन
"आये हैं अकेले और जायेंगे अकेले सब,
___ भोगेंगे अकेले दुःख सुख भी अकेले ही। माता पिता भाई बन्धु सुत दारा परिवार,
किसी का न कोई साथी सब हैं अकेले ही ॥ गिरधर छोड़कर दुविधा न सोचकर,
तत्त्व छान बैठ के एकान्त में अकेले ही। कल्पना है नाम रूप झूठे राव रंक भूप,
अद्वितीय चिदानन्द तू तो है अकेलो ही ॥" उक्त छन्द में अन्तर में पैठ जानेवाली अकेलेपन की अनुभूति का तरल प्रवाह तो है ही, सम्यग्दिशानिर्देश भी है। अकेलापन (एकत्व) है स्वरूप जिसका - ऐसे अद्वितीय चिदानन्दघन आत्मा को असत्कल्पनाओं से विरत होकर एकान्त में बैठकर अकेले ही तत्त्वाभ्यास करने की मार्मिक प्रेरणा भी इसमें दी गई है।
एकत्व (अकेलापन) आत्मा की मजबूरी नहीं, सहजस्वरूप है। एकत्व आत्मा का ऐसा स्वभाव है, जो अनादिकाल से प्रतिसमय उसके साथ है और अनन्तकाल तक रहेगा; क्योंकि वह आत्मा का द्रव्यगत स्वभाव है। इसीप्रकार अन्यत्व भी आत्मा का द्रव्यगत स्वभाव ही है। निज में एकत्व और पर से अन्यत्व वस्तु की स्वभावगत विशेषताएँ हैं, इनके बिना वस्तु का अस्तित्व भी सम्भव नहीं है। ___ आचार्य कुन्दकुन्द ने समयसार में इसी एकत्व-विभक्त आत्मा के प्रतिपादन की प्रतिज्ञा की है। सम्पूर्ण समयसार एकत्व-विभक्त आत्मा के प्रतिपादन को ही समर्पित है। जैसाकि निम्नांकित पंक्ति से स्पष्ट है -
"तं एयत्तविहत्तं दाएहं अप्पणो सविहवेणा' उस एकत्व-विभक्त आत्मा को मैं अपने निजवैभव से दिखाता हूँ।"
१. कविवर गिरधरकृत बारह भावना २. समयसार, गाथा ५