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भरा ओज है, जो पाठकों एवं श्रोताओं को एकदम आकर्षित कर लेता है । यही कारण है कि भारत के बाहर बसे हुए भारतवासी भी उन्हें अति आग्रहपूर्वक धर्मप्रचारार्थ आमंत्रित करते हैं । फलतः वे विगत 22 वर्षों से हर वर्ष 2 माह यूरोप एवं अमेरिका के विभिन्न नगरों में अध्यात्म का डंका बजा रहे हैं। उनकी इस लोकप्रियता और सम्मान पर संस्थान गर्व का अनुभव करती है और संस्था के प्रति उनके समर्पण के लिए उनका आभार मानती है।
डॉ. भारिल्ल उन प्रतिभाशाली विद्वानों में है, जो आज समाज में सर्वाधिक पढ़े एवं सुने जाते हैं। वे न केवल लोकप्रिय प्रवचनकार एवं कुशल अध्यापक ही हैं, अपितु सिद्धहस्त लेखक, कुशल कथाकार, सफल सम्पादक एवं आध्यात्मिक कवि भी हैं।
साहित्य व समाज के प्रत्येक क्षेत्र में उनकी गति अबाध है । तत्त्वप्रचार की गतिविधियों को निरन्तर गति प्रदान करनेवाली उनकी नित नई सूझ-बूझ, अद्भुत प्रशासनिक क्षमता एवं पैनी पकड़ का ही परिणाम है कि आज जयपुर: आध्यात्मिक गतिविधियों का केन्द्र बनता जा रहा है।
आपने 'समयसार अनुशीलन', 'क्रमबद्धपर्याय' एवं 'परमभावप्रकाशक नयचक्र' जैसे गूढ़ दार्शनिक विषयों को स्पष्ट करनेवाली कृतियाँ लिखीं, जिन्होंने आगम एवं अध्यात्म के गहन रहस्यों को सरलभाषा में सुबोध शैली में प्रस्तुत कर श्री कानजीस्वामी द्वारा व्याख्यायित जिनसिद्धान्तों को जन-जन तक पहुँचाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। यही कारण है कि पूज्य गुरुदेवश्री की उन पर अपार कृपा रही। वे अत्यन्त स्पष्ट शब्दों में कहा करते थे कि 'पण्डित हुकमचन्द' का वर्तमान तत्त्वप्रचार में बड़ा हाथ है।
उत्तमक्षमादि दशधर्मों का विश्लेषण जिस गहराई से आपने 'धर्म के दशलक्षण' पुस्तक में किया है, उसने जनसामान्य के साथ-साथ विद्वत्वर्ग का भी मन मोह लिया । जिसे पढ़कर स्व. पण्डित जगन्मोहनलालजी शास्त्री कह उठे थे कि 'डॉ. भारिल्ल की लेखनी को सरस्वती का वरदान है।'
'सत्य की खोज', 'तीर्थंकर भगवान महावीर और उनका सर्वोदय तीर्थ', 'मैं कौन हूँ', 'पण्डित टोडरमल : व्यक्तित्व और कर्तृत्व', 'आप कुछ भी कहो', 'चिन्तन की गहराईयाँ', 'सूक्ति सुधा' तथा 'बिखरे मोती' जैसी कृतियाँ