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________________ अनित्यभावना : एक अनुशीलन शायद आपको यह अमरता पसन्द न आवे और आप मरना चाहें, पर ध्यान रहे अमर लोग मरते नहीं है; अब तो अनन्तकाल तक आपको इसीप्रकार रहना होगा । ३० आप यह भी सोच सकते हैं कि हम ही क्यों, हमारे सभी साथी, इष्टमित्र, पुत्र- परिवार सभी अमर होंगे, फिर तो अकेलापन नहीं खटकेगा और न पुत्र-परिवार को अपनी आँखों से मरता ही देखना होगा; सब-कुछ आज जैसा ही रहेगा। पर यदि ऐसा हुआ तो समस्या और भी अधिक उलझ जायेगी; क्योंकि फिर कोई मरेगा नहीं - यह बात तो ठीक, पर उत्पादन तो चालू रहेगा ही; क्योंकि आपकी कल्पना अमरता की है, अजन्मा की नहीं । इस स्थिति में भीड़ बढ़ती ही जावेगी । जनसंख्या की निरन्तर वृद्धि के इस युग में इसकी भयावहता पर प्रकाश डालने की विशेष आवश्यकता नहीं है । यदि आप कहें कि हम अमरता के समान अजन्मा की कल्पना भी करेंगे। यद्यपि आप अपने कल्पनालोक में विचरने के लिए पूर्ण स्वतंत्र हैं, तथापि इससे भी कोई समाधान निकलनेवाला नहीं है; क्योंकि फिर तो सब यों का यों ही थम जायगा, विकास एकदम अवरुद्ध हो जावेगा । जरा और पीछे को चलें तो यदि आपके बाप-दादों ने ऐसी अमरता प्राप्त कर ली होती तो आपके आने की सम्भावना ही नहीं रहती । वस्तुस्वरूप के विरुद्ध कल्पनालोक में विचरण करने पर बहुत दूर जाकर भी कुछ हाथ लगनेवाला नहीं है, सुख-शान्ति प्राप्त होनेवाली नहीं है; अतः भला इसी में है कि हम पर्यायों की नश्वरता को सही रूप में समझें, उसे सहजभाव से स्वीकार करें। सुख-शान्ति प्राप्त करने का एक मात्र यही उपाय है । संयोगों और पर्यायों की अनित्यता को जब हम अपनी मिथ्या मान्यताओं और राग-द्वेष के चश्मे से देखते हैं तो वह दुःखकर प्रतीत होती है, यदि सम्यग्ज्ञान के आलोक में देखें तो वस्तु का स्वभाव होने से शान्ति और
SR No.009445
Book TitleBarah Bhavana Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages190
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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