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________________ बारहभावना : एक अनुशीलन अपना और शरीरादिक का जहाँ-जैसा स्वभाव है, वैसा पहिचान कर, भ्रम को मिटाकर, भला जानकर राग नहीं करना और बुरा जानकर द्वेष नहीं करनाऐसी सच्ची उदासीनता के अर्थ यथार्थ अनित्यत्वादिक का चितवन करना ही सच्ची अनुप्रेक्षा है।" __ सभी प्राणी बारह भावनाओं का सच्चा स्वरूप समझकर अपना आत्महित करें - इसके लिए प्रत्येक भावना का विस्तृत अनुशीलन आवश्यक है, अपेक्षित है। अतः स्व-पर हित के लिए बारह भावनाओं के पृथक्-पृथक् अनुशीलन के संकल्प के साथ विराम लेता हूँ। १. मोक्षमार्गप्रकाशक, पृष्ठ २२९ । ज्ञानी और अज्ञानी णमोकार मन्त्र पढ़ने से कभी किसी धर्मात्मा की रक्षा करने देवता आ गये थे - यह पौराणिक आख्यान सत्य हो सकता है, इसमें शंका करने की कोई आवश्यकता नहीं है; पर इससे यह नियम कहाँ से सिद्ध होता है कि जब-जब कोई संकट में पड़ेगा और वह णमोकार मन्त्र बोलेगा, तब-तब देवता आयेंगे ही, अतिशय होगा ही। शास्त्रों में तो मात्र जो घटा था, उस घटना का उल्लेख है। उसमें यह कहाँ लिखा है कि ऐसा करने से ऐसा होता ही है? यह तो इसने अपनी ओर से समझ लिया है, अपनी इस समझ पर भी इसको विश्वास कहाँ है? होता तो आकुलित क्यों होता, भयाक्रान्त क्यों होता? ज्ञानी भी णमोकार मन्त्र पढ़ रहा है, शान्त भी है; पर उसकी शान्ति का आधार णमोकार मन्त्र पर यह भरोसा नहीं कि हमें बचाने कोई देवता आवेंगे। णमोकार मन्त्र तो वह सहज ही अशुभभाव से तथा आकुलता से बचने के लिए बोलता है। - क्रमबद्धपर्याय, पृष्ठ १००
SR No.009445
Book TitleBarah Bhavana Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages190
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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