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अभिमत
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प्रो. उदयचन्द्रजी सर्वदर्शनाचार्य, हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी (उ.प्र.) डॉ. भारिल्ल एक सिद्धहस्त लेखक हैं। उनकी कृतियों की प्रशंसा करना सूर्य को दीपक दिखाना है। उन्होंने आगम के परिप्रेक्ष्य में बारह भावनाओं पर विशद प्रकाश डाला है। पुस्तक पठनीय तथा संग्रहणीय है।
आयुर्वेदाचार्य पण्डित राजकुमारजी शास्त्री, निवाई (राज.)
डॉ. भारिल्ल एक अच्छे प्रवक्ता, प्रबुद्ध विचारक और कुशल लेखक हैं । आपके बोलने और लिखने की एक विशेष शैली है। भाषा सरल और सुबोध है, जिससे श्रोताओं और पाठकों के हृदयस्थल बड़े प्रभावित होते हैं और कठिनतम विषय को भी हृदयगंम कर लेते हैं ।
पण्डित धन्यकुमारजी गंगासा भोंरै, न्यायतीर्थ, कारजा (महाराष्ट्र )
'बारह भावना : एक अनुशीलन' पुस्तक में आध्यात्मिक और तात्त्विक विषय बड़ी रोचक शैली में प्रस्तुत किए हैं। यह पुस्तक जैन साहित्य में नए कीर्तिमान स्थापित करेगी।
पं. भरतचक्रवर्तीजी न्यायतीर्थ, सम्पादक - आत्मधर्म (तमिल) मद्रास यह पुस्तक अपने ढंग की अनूठी कृति है । पुस्तक में प्रथम छः भावनाएँ संयोगों और उनके स्वभावों से भिन्न बताकर निजात्म स्वभाव की ओर उन्मुख होने की प्रेरणा देती हैं। द्वितीय छः भावनाएँ संयोगी भावों से भी भिन्न बताकर निज चेतन स्वभाव में तल्लीनता की ओर ले जाती हैं। पुस्तक में डॉक्टर साहब की तर्क शक्ति खुलकर निखर पड़ी है।
पं. ज्ञानचंदजी जैन 'स्वतंत्र' सह सम्पादक, जैनमित्र, सूरत (गुज.)
यह कृति समयोपयोगी, नूतन एवं मौलिक है। संकट, आपत्ति, इष्ट-वियोग तथा रुग्णावस्था में इसका स्वाध्याय करने से आर्त- रौद्र परिणाम नहीं होते, कर्मों के बन्धन शिथिल होते हैं, मन को शान्ति मिलती है।
श्री अक्षयकुमारजी जैन, भू. पू. सम्पादक, नवभारत टाइम्स, दिल्ली
बारह भावनाओं पर डॉ. भारिल्लजी ने अपनी सरल, सुबोध और आकर्षक शैली के द्वारा सामान्य-जन के लिए विशद वर्णन कर दिया है। हर भावना के साथ पद्य में भी 'भावना' की भावना को स्पष्ट कर दिया है ।
यह कृति समाज में अत्यन्त समादृत एवं लाभकारी सिद्ध होगी ।