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बारहभावना : एक अनुशीलन
धर्म ही वह कल्पतरु है नहीं जिसमें धर्म ही चिन्तामणी है नहीं जिसमें धर्मतरु से याचना बिन पूर्ण होती धर्म चिन्तामणी है शुद्धात्मा की
याचना ।
चाहना ॥
कामना । साधना ॥ ३ ॥
धर्म एक ऐसा कल्पवृक्ष है, जिससे याचना की आवश्यकता नहीं पड़ती। इसीप्रकार धर्म ही ऐसा चिन्तामणी रत्न है, जिससे कुछ चाहना नहीं पड़ता । धर्मरूपी कल्पवृक्ष से माँगे बिना ही कामनाएँ पूर्ण होती हैं अथवा कामनाएँ ही समाप्त हो जाती हैं। शुद्धात्मा की साधना ही सच्चा धर्म चिन्तामणि है, जिससे बिना चिन्तन के ही सर्व चिन्ताएँ समाप्त हो जाती हैं।
शुद्धातमा की साधना अध्यात्म का आधार है। शुद्धातमा की भावना ही भावना का सार है ॥ वैराग्यजननी भावना का एक ही आधार है।
ध्रुवधाम की आराधना आराधना का सार है ॥४॥
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आध्यात्मिक जीवन का आधार एक शुद्धात्मा की साधना ही है और शुद्धात्मा की भावना ही धर्मभावना का या बारह भावनाओं का सार है । बैराग्योत्पादक धर्मभावना या बारह भावनाओं का एक मात्र आधार निज शुद्धात्मा ही है और ध्रुवधाम निज भगवान की आराधना ही आराधना का सार है।
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क्रान्ति तो एक आँधी है, जो धूल उड़ाती आती है और सड़ी-गली पुरानी व्यवस्था उखाड़ती-पछाड़ती चली आती है। नई सही व्यवस्था तो शान्तिकाल में ही जमती है। यदि क्रान्ति से सच्चा लाभ लेना है, तो क्रान्ति के बाद सहज प्राप्त होने वाले शान्तिकाल का सही उपयोग कर लेना ही बुद्धिमानी है । क्रान्ति में हृदय-पक्ष की प्रधानता रहती है, भावना- पक्ष प्रधान रहता है, पर शान्तिकाल में बुद्धि की परीक्षा की घड़ी आती है । क्रान्ति विध्वंस करती है और शान्ति निर्माण ।
सत्य की खोज, पृष्ठ २३७