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________________ १४० लोकभावना : एक अनुशीलन । लोकभावना का क्षेत्र बहुत विस्तृत है। कार्तिकेयानुप्रेक्षा की चार सौ नवासी गाथाओं में सर्वाधिक स्थान घेरनेवाली लोकभावना और धर्मभावना ही है। अनित्यभावना से निर्जराभावना तक नौ भावनाओं में कुल ११४ गाथाएँ हैं, जबकि अकेली लोकभावना १६९ गाथाओं को अपने में समेटे हुए हैं। लोकभावना में भेद-प्रभेद सहित छह द्रव्यों के स्वरूप के साथ-साथ लोक का भौगोलिक निरूपण भी समाहित हो जाता है। इसप्रकार हम देखते हैं कि इस भावना में जिनागम में वर्णित वस्तु-व्यवस्था संबंधी समस्त विषय-वस्तु आ जाती है। एक प्रकार से इसमें द्रव्यसंग्रह, पंचास्तिकायसंग्रह एवं त्रिलोकसार का सम्पूर्ण विषय आ जाता है। ___ यद्यपि इस लघु निबंध में उक्त सम्पूर्ण विषय-वस्तु का विस्तृत प्रतिपादन संभव नहीं है; तथापि लोकभावना की चिन्तन-प्रक्रिया एवं उसकी उपयोगिता पर सम्यक् अनुशीलन तो अपेक्षित है ही। यद्यपि लोकभावना की विषय-वस्तु अत्यन्त विस्तृत है, तथापि अनेक ज्ञानियों ने उसका प्रतिपादन एक-एक छन्द में भी किया है, फिर भी लोकभावना की सम्पूर्ण भावना को अपने में समाहित कर लिया है। इस दृष्टि से हिन्दी कवियों के निम्नांकित कथन द्रष्टव्य हैं - "किनहूँ न करौ न धरै को, षद्रव्यमयी न हरै को। सो लोक माँहि बिन समता, दुःख सहै जीव नित भ्रमता ।। छह द्रव्यों के समुदायरूप इस लोक को न तो किसी ने बनाया है, न कोई इसे धारण किए है और न कोई इसका विनाश ही कर सकता है। इस लोक में यह आत्मा अनादिकाल से समताभाव बिना भ्रमण करता हुआ अनन्त दुःख सह रहा है। चौदह राजु उतंग नभ, लोक पुरुष संठान । तामें जीव अनादि तैं, भरमत है बिन ज्ञान ॥ १. पण्डित दौलतरामजी : छहढाला, पंचम ढाल, छन्द १२ २. कविवर भूधरदासजी कृत : बारह भावना
SR No.009445
Book TitleBarah Bhavana Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages190
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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