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बारहभावना : एक अनुशीलन
निज आतमा के भान बिन है निर्जरा किस काम की । निज आतमा के ध्यान बिन है निर्जरा बस नाम की ॥ है बंध की विध्वंसनी आराधना ध्रुवधाम की ।
यह निर्जरा बस एक ही आराधकों के काम की ॥ ३ ॥
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आत्मज्ञान और आत्मध्यान के बिना होनेवाली सविपाक या अकाम निर्जरा किसी भी काम की नहीं है; नाममात्र की निर्जरा है, उसका मात्र नाम ही निर्जरा है; वह निर्जरातत्त्व या निर्जराभावना नहीं है। आराधकों के काम की तो एकमात्र अविपाकनिर्जरा ही है, जो ध्रुवधाम निज भगवान आत्मा की आराधना से उत्पन्न होती है और कर्मबन्ध का विध्वंस करनेवाली है।
इस सत्य को पहिचानते वे ही विवेकी धन्य हैं । ध्रुवधाम के आराधकों की बात ही कुछ अन्य है ॥ शुद्धातमा की साधना ही भावना का सार है । ध्रुवधाम की आराधना आराधना का सार है ॥ ४ ॥
• जो जीव इस सत्य को जानते हैं, पहिचानते हैं; वे ही विवेकी हैं, वे ही
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धन्य हैं; क्योंकि ध्रुवधाम निज भगवान के आराधकों की बात ही कुछ और
होती है, गजब की होती है। संवरभावना का सार शुद्धात्मा को जानना ही है और ध्रुवधाम निज भगवान की आराधना ही आराधना का सार है।
"नहीं। देखो नहीं, देखना सहज होने दो; जानो नहीं, जानना सहज होने दो। रमो भी नहीं, जमो भी नहीं; रमना - जमना भी सहज होने दो। सब-कुछ सहज; जानना सहज, देखना सहज, जमना सहज, रमना सहज । कर्तृत्व के अहंकार से ही नहीं, विकल्प से भी रहित सहज ज्ञाता - दृष्टा बन जावो । "
- सत्य की खोज, पृष्ठ २०३