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________________ मेरी भावना बोधिदुर्लभभावना संबंधी निम्नांकित पंक्तियाँ मुझे बहुत ही आन्दोलित करती थीं - "धन-कन-कंचन राजसुख, सबहि सुलभकर जान। दुर्लभ है संसार में, एक जथारथ ज्ञान॥ इस असार संसार में धन-धान्य, सोना-चाँदी एवं राजाओं जैसे भोग आदि सभी पदार्थ तो सुलभ ही हैं; पर एक सम्यग्ज्ञान ही दुर्लभ है।" वैराग्यवर्धक बारह भावानाएँ मुक्तिपथ का पाथेय तो हैं ही, लौकिक जीवन में अत्यन्त उपयोगी हैं । इष्ट-वियोग और अनिष्ट-संयोगों से उत्पन्न उद्वेगों को शान्त करनेवाली ये बारह भावनाएँ व्यक्ति को विपत्तियों में धैर्य एवं सम्पत्तियों में विनम्रता प्रदान करती हैं, विषय-कषायों से विरक्त एवं धर्म में अनुरक्त रखती हैं, जीवन के मोह एवं मृत्यु के भय को क्षीण करती हैं, बहुमूल्य जीवन के एक-एक क्षण को आत्महित में संलग्न रह सार्थक कर लेने को निरन्तर प्रेरित करती हैं; जीवन के निर्माण में इनकी उपयोगिता असंदिग्ध है। बारह भावनाएँ जीवन में एक बार पढ़ लेने की वस्तु नहीं; प्रतिदिन पढ़ने, विचारने, चिन्तन करने, मनन करने की अलौकिक भावनाएँ हैं। कोई भी आध्यात्मिक रुचिवाला जैन व्यक्ति, यदि वह कवि है तो वह पद्यमय बारह भावनाएँ अवश्य लिखेगा। यद्यपि मैं मूलतः कवि नहीं हूँ, तथापि मैंने भी यौवनारंभ में ही पद्यमय बारह भावनाएँ लिखी थीं, जो आज उपलब्ध नहीं हैं, कहीं गुम हो गई हैं। एक-एक भावना में अनेक-अनेक छन्द थे, जिनकी कुछ पंक्तियाँ मुझे आज भी याद हैं, जिन्हें मैं आज भी अपने प्रवचनों में यदा-कदा प्रसंगानुसार बोला करता हूँ। जब शाश्वत सत्य के प्रतिपादक आध्यात्मिक मासिक आत्मधर्म का संपादन मेरे पास आया तो मैंने भी उसमें शाश्वत मूल्यों के प्रतिपादक संपादकीय ही लिखे; जो धर्म के दश लक्षण, क्रमबद्धपर्याय, चैतन्य चमत्कार १. पण्डित भूधरदास कृत बारह भावना
SR No.009445
Book TitleBarah Bhavana Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages190
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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