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जहजायरूवसरिसो तिलतुसमेत्तं ण गिहदि हत्थेसु । जइ लेइ अप्पबहुयं तत्तो पुण णिग्गोदम् ।।१८।। जस्स परिग्गहगहणं अप्पं बहयं च हवइ लिंगस्स। सो गरहिउ जिणवयणे परिगहरहिओ णिरायारो ।।१९।। पंचमहव्वयजुत्तो तिहिं गुत्तिहिं जो स संजदो होई। णिग्गंथमोक्खमग्गो सो होदि हु वंदणिज्जो य ।।२०।। दुइयं च उत्त लिंगं उक्किटुं अवरसावयाणं च। भिक्खं भमेइ पत्ते समिदीभासेण मोणेण ।।२१।। लिंगं इत्थीण हवदि भुंजइ पिंड सुएयकालम्मि । अज्जिय वि एक्कवत्था वत्थावरणेण भुंजेदि ।।२२।। ण विसिज्झदिवत्थधरोजिणसासणेजइ विहोइ तित्थयरो। णग्गो विमोक्खमग्गो सेसा उम्मग्गया सव्वे ।।२३।। लिंगम्मि य इत्थीणं थणंतरे णाहिकक्खदेसेसु। भणिओ सुहुमो काओ तासिं कह होइ पव्वजा ।।२४।। जइ दंसणेण सुद्धा उत्ता मग्गेण सावि संजुत्ता। घोरं चरिय चरित्तं इत्थीसु ण पव्वया भणिया ।।२५।। चित्तासोहि ण तेसिं ढिल्लं भावं तहा सहावेण । विज्जदि मासा तेसिं इत्थीसु ण संकया झाणा ।।२६।। गाहेण अप्पगाहा समुद्दसलिले सचेलअत्थेण।। इच्छा जाहु णियत्ता ताह णियत्ताई सव्वदुक्खाई।।२७।।
चारित्रपाहुड सव्वण्हु सव्वदंसी णिम्मोहा वीयराय परमेट्ठी। वंदित्तु तिजगवंदा अरहंता भव्वजीवेहिं ।।१।। णाणं वेसण सम्मं चारित्तं सोहिकारणं तेसिं। मोक्खाराहणहेउं चारित्तं पाहुडं वोच्छे ।।२।। जं जाणइ तं णाणं जं पेच्छइ तं च दंसणं भणियं । णाणस्स णिच्छियस्स य समवण्णा होइ चारित्तं ।।३।।
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