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________________ यदि पढ़े बहुश्रुत और विविध क्रिया-कलाप करे बहुत । पर आत्मा के भान बिन बालाचरण अर बालश्रुत ॥१००॥ निजसुख निरत भवसुख विरत परद्रव्य से जो पराङ्मुख। वैराग्य तत्पर गुणविभूषित ध्यान धर अध्ययन सुरत ॥१०१॥ आदेय क्या है हेय क्या - यह जानते जो साधुगण । वे प्राप्त करते थान उत्तम जो अनन्तानन्दमय ॥१०२।। जिनको नमे थुति करे जिनकी ध्यान जिनका जग करे।। वे नमें ध्यावें थुति करें तू उसे ही पहिचान ले ॥१०३॥ अरहंत सिद्धाचार्य पाठक साधु हैं परमेष्ठी पण । सब आतमा की अवस्थायें आत्मा ही है शरण ॥१०४।। (९८)
SR No.009443
Book TitleAshtapahud Padyanuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2002
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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