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अष्टपाहुड:पद्यानुवाद
दर्शनपाहुड़
(हरिगीत) कर नमन जिनवर वृषभ एवं वीर श्री वर्द्धमान को। संक्षिप्त दिग्दर्शन यथाक्रम करूँ दर्शनमार्ग का॥१॥ सद्धर्म का है मूल दर्शन जिनवरेन्द्रों ने कहा। हे कानवालो सुनो ! दर्शनहीन वंदन योग्य ना॥२॥ दृगभ्रष्ट हैं वे भ्रष्ट हैं उनको कभी निर्वाण ना।। हों सिद्ध चारित्रभ्रष्ट पर दृगभ्रष्ट को निर्वाण ना॥३॥
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