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चौसठ चमर चौंतीस अतिशय सहित जो अरहंत हैं। वे कर्मक्षय के हेतु सबके हितैषी भगवन्त हैं ।।२९।। ज्ञान-दर्शन-चरण तप इन चार के संयोग से। हो संयमित जीवन तभी हो मुक्ति जिनशासन वि.॥३०॥ ज्ञान ही है सार नर का और समकित सार है। सम्यक्त्व से हो चरण अर चारित्र से निर्वाण है।॥३१॥ सम्यक्पने परिणमित दर्शन ज्ञान तप अर आचरण। इन चार के संयोग से हो सिद्ध पद सन्देह ना॥३२॥ समकित रतन है पूज्यतम सब ही सुरासुर लोक में। क्योंकि समकित शुद्ध से कल्याण होता जीव का॥३३॥
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