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प्रकाशकीय डॉ. हुकमचन्दजी भारिल्ल द्वारा लिखित 'अनेकान्त और स्याद्वाद' नामक कृति का यह पंचम संस्करण प्रकाशित करते हुए हमें हार्दिक प्रसन्नता का अनुभव हो रहा है। यद्यपि यह कृति 'तीर्थंकर महावीर और उनका सर्वोदय तीर्थ' का ही एक अंश है, पर अत्यन्त उपयोगी जानकर इसे पृथक् से भी प्रकाशित किया गया था। इसके पश्चात् इसे 'मैं कौन हूँ' पुस्तिका में अन्य निबन्धों के साथ प्रकाशित किया गया। बाद में यह कृति ‘परमभाव प्रकाशक नयचक्र' के छठवें अध्याय के रूप में भी प्रकाशित हुई।। ____ डॉ. हुकमचन्दजी भारिल्ल जैन समाज के प्रकाण्ड विद्वान और जानेमाने लेखक हैं, उनकी छोटी-बड़ी 64 पुस्तकें अबतक अनेक भाषाओं में लगभग 40 लाख की संख्या में छपकर जन-जन तक पहुँच चुकी हैं, जो उनकी लोकप्रियता का ज्वलन्त प्रमाण हैं।
_ 'अनेकान्त और स्याद्वाद' जैनधर्म के प्रमुख सिद्धान्तों में से है। उपरोक्त विषय पर डॉ. भारिल्लजी ने बड़ा ही सूक्ष्म विवेचन प्रस्तुत पुस्तिका में किया है। ___इसप्रकार 2 लाख 18 हजार 800 तो अबतक यह प्रकाशित हो चुकी है; परन्तु फिर भी इसके पृथक् पुस्तिका के रूप में प्रकाशन की माँग बनी हुई है। अतः इसका यह पंचम संस्करण पृथक् से प्रकाशित किया जा रहा है। __इस पुस्तिका के प्रकाशन में साहित्य प्रकाशन एवं प्रचार विभाग के प्रभारी श्री अखिल बंसल का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है अतः वे बधाई के पात्र हैं। सभी आत्मार्थी बन्धु इस कृति से लाभान्वित हों- इसी पवित्र भावना के साथ।
- ब्र. यशपाल जैन, एम.ए.
प्रकाशन मंत्री