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दशकरण चर्चा
२९. जिनके देवायु का सत्त्व हो, ऐसे मुनिराज कर्मों की पूर्ण क्षपणा नहीं कर पाते, उपशमश्रेणी भले ही चढ़ जावे ।
३०. जिनके एक बार मिथ्यात्व का असत्त्व हो जाता है, उनके फिर से उसका सत्त्व कभी नहीं हो सकता ।
३१. नारकियों में देवायु का सत्त्व नहीं होता ।
३२. देवों में नरकायु का सत्त्व नहीं होता।
३३. एक जीव के भुज्यमान तथा बध्यमान इन दो आयु से अधिक तीसरी आयु का सत्त्व सम्भव नहीं है।
३४. कम-से-कम एक आयु का ( भुज्यमान आयु का ) सत्त्व सकल संसारी जीवों के होता ही है। (जब तक आगामी आयु नहीं बंधेगी ) ।
३५. तीर्थंकर प्रकृति की सत्ता तीसरे नरक पर्यन्त ही होती है। ३६. तीर्थंकर प्रकृति की सत्ता ऊपर तो सौधर्मादि सभी स्वर्गों में सम्भव है।
३७. साता व असाता दोनों का सत्त्व तेरहवें गुणस्थान तक के सभी जीवों के रहता है।
7. प्रश्न: कर्म की सत्ता (सत्व, अस्तित्व) का वर्णन अधिक क्यों ? १. सत्ता, बंध का कार्य है और उदय का कारण है।
२. सत्ता का कारण बंध है और सत्ता का कार्य उदय है।
३. सत्ता के कारण और कार्य का वर्णन अधिक है; इसलिए सत्ता का वर्णन अधिक है।
४. उदय, उदीरणा आदि का कथन सत्ता के बिना नहीं हो सकता ।
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Ananji Adhyatmik Duskaran Book
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अधिकार तीसरा
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उदयकरण
आगमाश्रित
चर्चात्मक प्रश्नोत्तर
प्रस्तुत उदयकरण विषय का विवरण करते समय मेरे मन में जो प्रश्न सहज उत्पन्न हुये थे, उनका उत्तर देने का मैंने प्रयत्न किया है।
१. प्रश्न :- उदयकरण का स्वरूप जानने से कर्म के उदय के अनुसार ही जीव के भाव होते हैं तो कर्म ही बलवान हो गया, कर्म के अनुसार ही जीव को नाचना पड़ेगा। जीव अपनी ओर से स्वतंत्र कुछ कर ही नहीं सकता; ऐसा हमें भी लग रहा है।
प्रथमानुयोग की अनेक कहानियाँ भी इसी विषय को पुष्ट करती हैं। तीर्थंकर ( होने वाले) आदिनाथ मुनिराज को अनेक महीने तक आहार नहीं मिला, मुनिराज पार्श्वनाथ पर उपसर्ग हो गया। इन विषयों को जानते हुए हमें भी कर्म ही बलवान लग रहा है। आप सत्य का ज्ञान कराइए ?
उत्तर :- कर्म है, उसका उदय है, उदयानुसार कार्य होता है, ऐसा कथन भी शास्त्र में मिलता है। इसका अर्थ कर्म बलवान है, जीव का उनके सामने कुछ नहीं चल सकता, ऐसा नहीं है। जब कर्म का उदय रहता है, तब जीव अपने में कुछ परिवर्तन किए बिना क्या खाली बैठा रहता है? अपराध तो जीव स्वयं करता है।
क्रम से हम इसके सत्य स्वरूप को जानने का प्रयास करते हैं।
कर्म के दो भेद हैं - १. घाति कर्म और २. अघाति कर्म । इनमें से पहले हम अघाति कर्म की बात करेंगे। अघाति कर्मों के ४ भेद हैं