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आत्मा ही परमात्मा है
चले । इसदिन एक कक्षा गुणमाला भारिल्ल ने मोक्षमार्गप्रकाशक व छहढाला के आधार पर साततत्त्वों की भूल के सम्बन्ध में ली ।
१४ जून, १९८७ ई. को समयसार गाथा ११ पर एक व्याख्यान तथा उसी के सन्दर्भ में मोक्षमार्गप्रकाशक के आधार पर शास्त्रों के अर्थ करने की पद्धति पर दूसरा व्याख्यान हुआ । प्रश्नोत्तर भी हुए । इसीदिन एक व्याख्यान अनेकान्त और स्याद्वाद विषय पर भी हुआ । रात्रि में जनरल : प्रश्नोत्तर हुए।
१५ जून, १९८७ को भगवान महावीर के बाद हुए संघभेद पर विस्तार से प्रकाश डाला गया । इसीदिन एक प्रवचन पाँच भावों (उपशम, क्षय, क्षयोपशम, उदय और परिणामिकभाव) पर हुआ । ध्यान रहे पाठशाला में वीतराग-विज्ञान पाठमाला पढ़ाते समय आई कठिनाई के कारण इस विषय पर व्याख्यान की मांग की गई थी । ___वहाँ पाठशाला में किस तरह पढ़ाया जाता है - यह बताने के लिए डॉ. भारिल्ल के सामने जयावेन नागदा ने वीतराग-विज्ञान पाठमाला भाग १ में समागत कर्म वाला पाठ तथा कन्नूभाई ने साततत्त्व वाला पाठ पढ़ाया । डॉ. भारिल्ल ने आवश्यक सुझाव दिये । बालबोध पाठमाला भाग ३ की अप्रैल, १९८७ में हुई परीक्षा में उच्चस्थान प्राप्त करनेवालों को डॉ. भारिल्ल के हाथों पुरस्कृत किया गया ।
प्रतिदिन शिविर डॉ. हुकमचन्दजी भारिल्ल द्वारा लिखित जिनेन्द्र-वंदना के सस्वर सामूहिक पाठ से आरम्भ होता था । दिन में एकबार बारह भावनाओं का पाठ भी किया जाता था ।
शिविर के बाद वाशिंगटन में ही १६ जून, १९८७ ई. को शान्तिभाई के घर पर भक्तामर स्तोत्र पर प्रवचन व प्रश्नोत्तर हुए, जिसका वीडिओ कैसेट भी बनाया गया । वाशिंगटन शिविर के कैसेट अमेरीका के अनेक जैन सेन्टर एवं व्यक्तियों को भेजे गये हैं । आगामी वर्ष के शिविर के