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आत्मा ही परमात्मा है
___ क्या कहा, कितने ही रुपये दो, पर अब वह रिक्शा नहीं चलायेगा ।
"क्यों ?" "क्योंकि अब वह करोड़पति हो गया है ।"
"अरे भाई, अभी तो मात्र पता ही चला है, अभी रुपये हाथ में कहाँ आये हैं ?" __"कुछ भी हो, अब उससे रिक्शा नहीं चलेगा, क्योंकि करोड़पति रिक्शा नहीं चलाया करते ।"
इसीप्रकार जब किसी व्यक्ति को आत्मानुभवपूर्वक सम्यग्दर्शन-ज्ञान प्रगट हो जाता है, तब उसके आचरण में भी अन्तर आ ही जाता है । यह वात अलग है कि वह तत्काल पूर्ण संयमी या देश संयमी नहीं हो जाता, फिर भी उसके जीवन में अन्याय, अभक्ष्य एवं मिथ्यात्व पोषक क्रियाएँ नहीं रहती हैं । उसका जीवन शुद्ध सात्विक हो जाता है, उससे हीन काम नहीं
होते।
वह युवक सवारी लेकर स्टेशन तो नहीं जावेगा, पर उस सेठ के घर रिक्शा वापिस देने और किराया देने तो जावेगा ही, जिसका रिक्शा वह किराये पर लाया था । प्रतिदिन शाम को रिक्शा और किराये के दस रुपये दे आने पर ही उसे अगले दिन रिक्शा किराये पर मिलता था । यदि कभी रिक्शा
और किराया देने न जा पावे तो सेठ घर पर आ धमकता था, मुहल्ले वालों के सामने उसकी इज्जत उतार देता था ।
आज वह सेठ के घर रिक्शा देने भी न जावेगा । उसे वहीं ऐसा ही छोड़कर चल देगा । तब फिर क्या वह सेठ उसके घर जायगा ?
हाँ जायगा, अवश्य जायगा; पर रिक्शा लेने नहीं, रुपये लेने नहीं; अपनी लड़की का रिश्ता लेकर जायगा; क्योकि यह पता चल जाने पर कि इसके