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आत्मा ही है शरण
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जिनवाणी सुनकर भी, पढ़कर भी, आध्यात्मिक चर्चायें करके भी आत्मानुभूति से अछूते रह गये। - समाचार-पत्रों में प्रकाशित एवं आकाशवाणी से प्रसारित उक्त समाचार की ओर जब स्वर्गीय सेठजी के उन अभिन्न मित्र का ध्यान गया, जिन्हें उन्होंने मरते समय उक्त रहस्य की जानकारी दी थी, तो वे तत्काल उस युवक के पास पहुँचे और बोले - "वेटा ! तुम रिक्शा क्यों चलाते हो ?" उसने उत्तर दिया - "यदि रिक्शा न चलायें तो खायेंगे क्या ?"
उन्होंने समझाते हुए कहा – “भाई, तुम तो करोड़पति हो, तुम्हारे तो करोड़ों रुपये बैंक में जमा है ।"
अत्यन्त गमगीन होते हुए युवक कहने लगा -
"चाचाजी, आपसे ऐसी आशा नहीं थी, सारी दुनिया तो हमारा मज़ाक उड़ा ही रही है, पर आप तो वुजुर्ग हैं, मेरे पिता के वरावर हैं; आप भी---- "
वह अपनी बात समाप्त ही न कर पाया था कि उसके माथे पर हाथ फेरते हुए अत्यन्त स्नेह से वे कहने लगे - ___ "नहीं भाई, मैं तेरी मज़ाक नहीं उड़ा रहा हूँ । तू सचमुच ही . करोड़पति है । जो नाम समाचार-पत्रों में छप रहा है, वह तेरा ।। ही नाम है ।" ___ अत्यन्त विनयपूर्वक वह बोला – “ऐसी बात कहकर आप मेरे चित्त को व्यर्थ ही अशान्त न करें । मैं मेहनत-मजदूरी करके दो रोटियाँ पैदा करता हूँ और आराम से जिन्दगी बसर कर रहा हूँ । मेरी महत्त्वाकांक्षा को जगाकर आप मेरे चित्त को क्यों उद्वेलित कर रहे हैं । मैंने तो कभी कोई रुपये बैंक में जमा कराये ही नहीं । अतः मेरे रुपये बैंक में जमा कैसे हो सकते हैं?"