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आत्मा ही परमात्मा है
कारण है कि यह बात जान लेने पर भी कि मैं स्वयं परमात्मा हूँ, सम्यक् श्रद्धान बिना दुःख का अन्त नहीं होता, चतुर्गतिभ्रमण समाप्त नहीं होता, सच्चे सुख की प्राप्ति नहीं होती ।
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समाचार-पत्र में उक्त समाचार पढ़कर वह युवक अपने साथियों को भी बताता है । उन्हें समाचार दिखाकर कहता है कि 'देखो, मैं करोड़पति हूँ । अब तुम मुझे गरीब रिक्शेवाला नहीं समझना ।' इसप्रकार कहकर वह अपना और अपने साथियों का मनोरंजन करता है, एकप्रकार से स्वयं अपनी हँसी उड़ाता है । इसीप्रकार शास्त्रों में से पढ़ पढ़कर हम स्वयं अपने साथियों को भी सुनाते हैं । कहते हैं - 'देखो हम सभी स्वयं भगवान हैं, दीन-हीन मनुष्य नहीं ।' इसप्रकार की आध्यात्मिक चर्चाओं द्वारा हम स्वयं का और समाज का मनोरंजन तो करते हैं, पर सम्यक् श्रद्धान के अभाव में भगवान होने का सही लाभ प्राप्त नहीं होता, आत्मानुभूति नहीं होती, सच्चे सुख की प्राप्ति नहीं होती, आकुलता समाप्त नहीं होती ।
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इसप्रकार अज्ञानीजनों की आध्यात्मिक चर्चा भी आत्मानुभूति के बिना, सम्यग्ज्ञान के बिना, सम्यक् श्रद्धान के बिना मात्र बौद्धिक व्यायाम बनकर रह जाती है ।
समाचार-पत्रों में प्रकाशित हो जाने के उपरान्त भी जब कोई व्यक्ति पैसे लेने बैंक में नहीं आया तो वैंकवालों ने रेडियो स्टेशन से घोषणा कराई । रेडियो स्टेशन को भारत में आकाशवाणी कहते हैं । अतः आकाशवाणी हुई कि अमुक व्यक्ति के इतने रुपये बैंक में जमा हैं, वह एकमाह के भीतर ले जावे, अन्यथा लावारिस समझकर सरकारी खजाने में जमा करा दिये जावेंगे ।
आकाशवाणी की उस घोषणा को रिक्शे पर बैठे-बैठे उसने भी सुनी, अपने साथियों को भी सुनाई, पर विश्वास के अभाव में कोई लाभ नहीं हुआ । इसीप्रकार अनेक प्रवक्ताओं से इस बात को सुनकर भी कि हम सभी स्वयं भगवान हैं, विश्वास के अभाव में बात वहीं की वहीं रही । जीवनभर