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________________ विदेशों में जैनधर्म के प्रचार-प्रसार ___ की आवश्यकता आज का युग वैज्ञानिक युग है। आवागमन के द्रुतगामी साधनों का विकास कर विज्ञान ने आज क्षेत्र की दूरी को समाप्त-सा ही कर दिया है। आज हम हजारों किलोमीटर दूर घण्टों में पहुँच सकते हैं और मिनटों में बात कर सकते हैं। वह जमाना अभी बहुत पुराना नहीं हुआ है, जब सामान्य नदियों और छोटी-छोटी पहाड़ियों से विभक्त निकटवर्ती क्षेत्र भी एक दूसरे से अनजाने ही रहते थे; पर आज अगाध सागर और हिमालय जैसे पर्वतराज भी अलंघ्य नहीं रहे हैं। यही कारण है कि आज के आदमी का सम्पर्क सात समुद्र पार के लोगों से भी सहज संभव हो गया है। सहज उपलब्ध आवागमन की इस सुविधा का सर्वाधिक लाभ व्यापारी समाज ने उठाया। घुमक्कड़ अध्यवसायी यह समाज प्राचीनकाल में भी अनेक कठिनाइयाँ और विपत्तियों का सामना करते हुए देशान्तरों में आता-जाता रहा है। आवागमन के सहज साधनों ने उसे और भी अधिक प्रोत्साहित किया। परिणामस्वरूप भारतीय व्यापारी समाज भी विश्व भर में फैल गया। जैनसमाज मूलतः व्यापारी समाज रहा है; अतः वह भी विश्व के कोने-कोने में पहुँच गया। यूरोपीय और अमेरिकन देशों की भौतिक समृद्धि ने उसे विशेष आकर्षित किया । अच्छे वेतनमानों में रोजगार के सहज साधन उपलब्ध होने के कारण पढ़ा-लिखा समाज भी विदेशों की ओर विशेष आकर्षित हुआ।
SR No.009440
Book TitleAatma hi hai Sharan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1998
Total Pages239
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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