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________________ आत्मा ही है शरण में पैदा हो गया है, सो गुलछर्रे उड़ा रहा है, कहीं और पैदा होता तो भूखों । अरे अभागे मरता, भूखों ......... बीच में ही बात काटते हुए पुत्र कहता कुछ कहो, पर अभागा नहीं कह सकते ।" "क्यों ?" - - 122 "ן 42 "पिताजी, और चाहे जो "क्योंकि, जिसे आप जैसा कमाऊ बाप मिला हो, वह अभागा कैसे हो सकता है ? अभागे तो आप हैं, जिसे मुझ जैसा गमाऊ वेटा मिला है ।" एक दिन पड़ौसी का बेटा स्कूल नहीं गया । उसे घर पर देखकर सेठ ने कहा "बेटा ! आज स्कूल क्यों नहीं गये ?" बच्चे ने उत्तर दिया - "मास्टरजी कहते हैं कि स्कूल में ड्रेस पहिनकर आओ और पुस्तकें लेकर आओ । मैं पापा से कहता हूँ तो उत्तर मिलता है कि कल ला देंगे, पर उनका कल कभी आता ही नहीं है, आज एक माह हो गया है । अतः आज मैं स्कूल ही नहीं गया हूँ ।" पुचकारते हुए सेठ बोला - "बेटा, चिन्ता की कोई बात नहीं । अपना वो नालायक पप्पू है न । वह हर माह नई ड्रेस सिलाता है और पुरानी फेंक देता है । पुस्तकें भी हर माह फाड़ता है और नई खरीद लाता है । बहुत-सी ड्रेसें और पुस्तकें पड़ी हैं । ले जावो ।” अब जरा विचार कीजिए, सेठ जिसकी भगवान जैसी स्तुति करता है, उसे अपने नालायक बेटे के उतरन के कपड़े और फटी पुस्तकें देने का भाव आता है और अपने उस नालायक बेटे को करोड़ों की सम्पत्ति दे जाने का पक्का विचार है । कभी स्वप्न में भी यह विचार नहीं आया कि थोड़ी-बहुत किसी और को भी दे दूँ। अब आप ही बताइये कि जगत में अपने की कीमत है या अच्छे की, सच्चे की ? अच्छा और सच्चा तो पड़ौसी का बेटा है, पर वह अपना
SR No.009440
Book TitleAatma hi hai Sharan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1998
Total Pages239
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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