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सुखी होने का सच्चा उपाय
इस जगत में न अच्छे की कीमत है न सच्चे की, अपनापन ही सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि सर्वस्व-समर्पण अपनों के प्रति ही होता है। यही कारण है कि मुक्ति के मार्ग में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण श्रद्धा गुण है, श्रद्धा गुण की निर्मल पर्याय सम्यग्दर्शन है ।
पर और पर्याय से भिन्न निज भगवान आत्मा में अपनापन स्थापित करना ही सम्यग्दर्शन है, निज भगवान आत्मा को निज जानना ही सम्यग्ज्ञान है और निज भगवान आत्मा में ही जमना-रमना सम्यक्चरित्र है । ___यहाँ आप कह सकते हैं कि विद्वानों का काम तो सच्चाई और अच्छाई की कीमत बताना है और आप कह रहे हैं कि इस जगत में न सच्चाई की कीमत है और न अच्छाई की ।
भाई, हम क्या कह रहे हैं, वस्तु का स्वरूप ही ऐसा है । एक करोड़पति सेठ था । उसका एक इकलौता बेटा था । कैसा ? जैसे कि करोड़पतियों के होते हैं, सातों व्यसनों में पारंगत ।
उसके पड़ोस में एक गरीब व्यक्ति रहता था । उसका भी एक बेटा था ।
कैसा ?
जैसा कि सेठ अपने बेटे को चाहता था, सर्वगुणसम्पन्न, पढ़ने-लिखने में होशियार, व्यसनों से दूर, सदाचारी, विनयशील ।
सेठ रोज सुबह उठता तो पड़ोसी के बेटे की भगवान जैसी स्तुति करता और अपने बेटे को हजार गालियाँ देता । कहता - "देखो वह कितना होशियार है, प्रतिदिन प्रातःकाल मन्दिर जाता है, समय पर सोकर उठता है और एक तू है कि अभी तक सो रहा है । अरे नालायक मेरे घर