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जैनभक्ति और ध्यान
एवं अन्तिम दो दिन हॉल में प्रवचन व चर्चा के कार्यक्रम हुए । यहाँ अन्य विषयों के अतिरिक्त पंचलब्धि विषय पर अत्यन्त गंभीर एवं मार्मिक प्रवचन एवं चर्चा हुई, जिसने अपना अलग ही प्रभाव छोड़ा । अनन्त कोरड़िया
और अशोक जैन की प्रेरणा इसके मूल में थी । वे इस विषय की गहराई समझना चाहते थे ।
इसके बाद डलास पहुंचे, जहाँ ३० जून से २ जुलाई तक कार्यक्रम थे। यहाँ तीनों प्रवचन जैन मन्दिर के हॉल में ही हुए । प्रवचन और चर्चा के विषय लगभग पूर्ववत् ही थे । सभी कार्यक्रम बहुत ही अच्छे रहे ।
इस वर्ष हमारे पास समय बहुत कम था और अनेक नगरों के आमंत्रण होने से दवाव बहुत अधिक था । अतः बहुत प्रयास के बाद भी मियामी को समय नहीं दिया जा सका । अतः वहाँ के लोगों में तीव्र असंतोष व्याप्त था ।
जब हम वाशिंगटन डी. सी. पहुंचे तो उनके फोन आना आरंभ हो गये। हमने उन्हें बहुत समझाया, आगामी वर्ष आने का पक्का आश्वासन दिया, पर वे कुछ भी सुनने को तैयार न थे । उनकी एक ही रट थी कि उन्हें समय अवश्य मिलना चाहिए । जब वे किसी भी रूप में कुछ भी मानने को तैयार न हुये तो हमने विचार कर उत्तर देने का आश्वासन दिया । ___ आश्वासन तो दे दिया, पर जब कार्यक्रम का गहराई से पुनरावलोकन किया तो वह एकदम सघन (टाइट) था, कहीं कोई गुंजाइश न थी । अतः यही सोचा गया कि सानफ्रांसिस्को में होने वाले जैना (जैन एसोसियेशन इन नार्थ अमेरिका) के द्विवार्षिक सम्मेलन में न जाकर वह समय मियामी को दे दिया जाए तो कोई हानि नहीं होगी; क्योंकि जैना के सम्मेलन का जो कार्यक्रम छपा था, उसमें बहुत वक्ताओं के इकट्ठे हो जाने से हमारा कार्यक्रम मात्र २० मिनट का ही था । लगभग सभी वक्ताओं की यही स्थिति थी।